Thursday, October 6, 2011

वरना ये एक धोखा है ...गीता पंडित

...
....


कभी जलाने
से पहले
रावण को
हमने सोचा है,
कितने रावण
मन के अंदर
जिनको हर पल भोगा है,
दूर करें
हर एक बुराई,
पहले
अपने मन - तन की ,
तभी तो
सच्चा
जलना होगा
वरना ये तो धोखा है


गीता पंडित

18 comments:

गीता पंडित said...

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Suneel R Karmele

great lines___________ thanks

गीता पंडित said...

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Prarthana Gupta

very true.

गीता पंडित said...

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Kavi Arjun Alhad BAHUT KHOOOBBbbb...
gita didi....
मन का रावण मर ना पाया पुतला जलता हर बार मिला...

गीता पंडित said...

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Kavi Arjun Alhad हर कुरसी की नीँव मेँ हमको रिश्वत का आधार मिला.!
निर्दोष मिला भयभीत हमेँ अपराधी रिश्तेदार मिला.!
आतंक/भय महँगाई के आगे इन्द्रप्रस्थ लाचार मिला.!
सत्ता के लोलुप सारस मेँ भी सदा स्वार्थ का सार मिला.!
अरे !
राम को अपना बना ना पाये
तो रावण क्या मारेँगे..
मन का रावण मर ना पाया पुतला जलता
हर बार मिला.!!
THANK YOU GITA DIDI

गीता पंडित said...

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Karim Pathan 'Anmol'

मन के रावण को यदि मार न पाएँ,
तो पुतले को जलाने का हमें कैसा अधिकार..?

गीता पंडित said...

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Rohit Gupta

bahut sunder panktiyan hain aur bilkul sach hai

गीता पंडित said...

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आज फिर हम छल से
या बल से
फूँक देंगे
अपनी औकात से बड़े और ऊंचे
कुछ पुतले
और होंगे खुश
थूक कर आसमान पर I

अपनी दुर्बलता
निरीहता
और विवशता की चिंगारी से
जला देंगे
ज्ञान और विवेक को
बिना अपने अन्दर बैठे
काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार को
हानि पहुँचने दिए
और बिना इन पर विजय पाए
मना लेंगे विजय दशमी I

इतिहास की भूलों पर उत्सव मनाना
हमारी आदत सी बन गयी है I

पहले भी हम
आज ही के दिन
तोड़ चुके हैं
उस सीढ़ी के पाए
जो हमारे लिए
स्वर्ग को सुगम बना सकती थी I

अपने अल्हड़पन में
फूँक चुके हैं उस स्वर्ण नगरी को
जिसमे बसी
तथाकथित बुराई को दूर करके
हम सोने से खरे हो सकते थे I

काट चुके हैं नाक
उस विश्वास की जो
अपने वश में आई अबला का
स्पर्श तक नहीं करता ;
जिसे हम स्वयं
न दे सके कोई सुख
सुरक्षा ,
न ला सके जिस पर आस्था
उसके सम्पूर्ण समर्पण के बाद भी ,
उतार दिया संदेह के अग्नि कुंड में
और कर दिया इतना बाध्य
की वह समां गई
स्वमाता की गोद में I

यदि इसी विजय का उत्सव मना रहे हैं हम लोग तो ,बधाई ...अशोक अग्रवाल.

गीता पंडित said...

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JaspalSingh Makkad
Well said, Geeta ji.

गीता पंडित said...

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Indira Poonawala
yahee baat main bhi subha se kah rahee hoon ek poem bhi likhee hai.dil mein chhupe rawan ka dahan kareen nafrat.5 vikar aaj un par vijay hasil karen.gita ji das sir hamare he ahikar ke hain.....unka vadh karen...........indira writer from india.

गीता पंडित said...

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AVijay Barasa
bhaut sunder panktiya liki h apne. ap shabdo ko keha se khoj lete h.hume garv h ki hum apki friend list me h.

गीता पंडित said...

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दिनेश मिश्र

वाह ...बहुत खूब !!

गीता पंडित said...

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चेतन रामकिशन ‎"

दुरित सोच का अंत नहीं है, नहीं सत्य का पालन!
ऐसे में बस लगे निरर्थक, पुतला दहन दशानन!

आज भी सीता को हरते हैं, देश में ढेरों रावण!
अपने झूठ के सम्मुख लगता, उनको सच साधारण!
गली गली हर चौराहे पर रावण हैं उजले से,
मन से अपने भुला रहे हैं, राम के शुद्ध उदाहरण!

श्री राम की मर्यादा का नहीं हो रहा पालन!
ऐसे में बस लगे निरर्थक, पुतला दहन दशानन............"

गीता पंडित said...

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Raj Shree
mann ke ravan se mukti ---sundar rachana hai

गीता पंडित said...

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Premdaya Pawar
Well said dear

गीता पंडित said...

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Zohra Javed
rituals have forever been more important than the spirit, the "bhavna" attached to them

गीता पंडित said...

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Prem Mathaliya
‎@गीता जी!!!!सही कहा अपने मन के अंदर के रावण को जलाना चाहिए....

गीता पंडित said...

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Rohit Gupta
dhanyawad Gita ji

गीता पंडित said...

आप सभी की आभारी हूँ...