Wednesday, January 29, 2020

पुकारना अपने बसंत को ...गीता पंडित


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प्रतीक्षा साधना है
साधना जीवन के अधरों की मुस्कान

मुस्कान को सदियों में ढालने के लिए
जीवन का मृत्यु के साथ निरंतर संघर्ष
उम्र के सर की चाँदनी है
जो मौन के शीतल जल में स्नानकर
धवल हो जाता है

मौन मन जब मुखर हो उठता है
ढह जाते हैं पीड़ा के साम्राज्य
पतझर झाँकने लगता है बगलें
अंगडाई लेकर उठती है
उदास ख़ामोश शाम
वीतरागी देह
पुकारती है अपने बसंत को
यही समय होता है पंछियों के लौट आने का

गीता पंडित
29/1/20