Tuesday, December 31, 2013

'अभी चीखता साल गया है' ...एक नवगीत ...गीता पंडित

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नव वर्ष 2014 शुभ हो , मंगलकारी हो , आनंददायी हो ।
जन की, समाज की, देश की, विश्व की आँखों में सलौने स्वप्न हों  ।
सभी को ढेरों बधाइयाँ एवं अशेष शुभ कामनाएं …… ( 1/1/2014 )
यह नवगीत आप सभी को समर्पित ____



अभी चीखता साल गया है ____


अभी चीखता
साल गया है 
कानों में है दर्द अभी 

चलो करें कुछ ऐसा जिससे 
स्वप्न पात हरियायें फिर 
नयनों में हो प्रेम कजरिया 
छुप-छुप के बतियायें फिर 

हर घर में फिर उजियारा हो 
हर द्वारे पर दीप जलें 
आँख बने ना 
सागर कोई 
नदिया का ना नीर ढले 

आँगन में 
पसराई पीड़ा 
अँखियों में है गर्द अभी 

मुस्कानों की चिट्ठी फिर से 
अधर-अधर को दे आएँ 
फिर बसंत हर मन में झूले 
गम सबके चल ले आएँ 

छप्पर रोटी पुस्तक कपड़े
का हो कहीं अकाल नहीं 
नव-वर्ष की 
नव बेला में 
कोई न हो बेहाल कहीं 

आज सियासी 
बेदर्दी से 
तन-मन भी हैं ज़र्द अभी 

-गीता पंडित
(दिल्ली)


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Monday, December 9, 2013

एक छोटी कविता ..... गीता पंडित

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बढ़े आ रहे हैं ___
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नहीं 
अंकुरित है 
ये दिल की ज़मीं, 
पर 
अंकुर ये शब्दों में उपजा रहे हैं 

रुका 
जो समय तो 
ये जग भी रुका, 
पर 
बने कारवाँ हम बढ़े आ रहे हैं । 

… गीता पंडित