Friday, October 28, 2011

एक पीड़ा थी तुम्हारी ... गीता पंडित ,


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एक पीड़ा
थी तुम्हारी ,
और
संग तन्हाईयाँ थी,
उम्र की
नैया में अब तो
नीर
भर-भर आ रहा है
मैं ना
भूली हूँ तुम्हें ,
और ना भूलुंगी कभी पर
याद का
पाखी ये देखो ,
आज झर-झर आ रहा है ||



गीता पंडित


( भाई दूज पर विशेष तुम्हारे लियें )

Tuesday, October 25, 2011

ड्योढी - ड्योढी दीप जलें.... गीता पंडित

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ड्योढी - ड्योढी
दीप जलें
घर-घर हो उजयारी,
मेरे दीपक
ज्योति जलाओ
अंतर्मन में न्यारी |

आज महल के
संग-संग देखो
कुटिया में भी दीप जलें,
मन की लहरी
आये झूमती
सबके मन में गीत चलें,

आज ना भीगें
नयन किसी के
नेह सुधा सब पर वारी |

(अंश मेरे नवगीत के )


गीता पंडित

Sunday, October 23, 2011

नवगीत की पाठशाला: २७. उत्सव के ये मौसम

नवगीत की पाठशाला: २७. उत्सव के ये मौसम: उत्सव के ये मौसम क्या क्या रंग दिखाते आये, तन-मन यादों के मेले में फिर भरमाते आए लाल ओढनी ओढ़े मनवा फिर से हुआ मलंग, अंतर्मन की ड्योढ़ी...

Friday, October 21, 2011

किसी के लियें नहीं वांछनीय ... गीता पंडित

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देख सकती हूँ भूखा स्वयम को

क्या देख पाउंगी भूख से दम तोड़ते हुए तुम्हें

भूखे भेडिये बैठे हैं निशाने साधे

और मैं फटे चीथड़ों में तन को ढांपती

कभी देखती हूँ तुम्हें,

कभी अपने आप को,

कभी कौने में ओंधे मुंह बेहोश पड़े नर पिशाच को

और कभी मंदिर में सजे उस भगवान को

पूंछती हुई कि कहो मेरा दोष, मेरा पाप

क्यूँ है मेरा ऐसा वर्त्तमान

क्यूँ था मेरा बेबस बीता हुआ कल

और ऐसा ही होगा मेरा तुम्हारा आने वाला कल

निरपराध होते हुए भी

मेरा जन्म केवल अपराध भरा

उस पर तुम्हारा जन्म

उससे भी बड़ा अपराध

हाय !!!!!

कैसी हतभागिनी मैं

और तुम

किसी के लियें नहीं वांछनीय

क्यूँ ??




.... गीता पंडित

Saturday, October 15, 2011

एक तुम्हारे लियें...... गीता पंडित ..




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वो रही यूँ ही मचलती
कौन मेरे संग गाती |
शब्द वो मुझसे चुराती,
भाव सारे बीन लाती
चाँद के ठंडे तवे पर
सेक रोटी दीन पाती,
चांदनी से छीनकर वो
चांदनी को गुनगुनाती
रैन के सारे तमस को
पी के सुबह मुस्कराती
कौन मेरे संग गाती ||
....







सुर सजें
कुछ इस तरह
बस
तू ही तू एक साथ हो,

प्रेम की
हर एक गली में
मन
से मन की बात हो,

छाँव हो
और धूप हो,
पथ
साथ हों ना साथ हों,

कामना
अब तो यही ,
हाथों
में तेरा हाथ हो ||
....







तुम्हें सुनना,
तुम्हें गुनना,
तुम्हारी बात बस करना

ना जाने क्यूँ
यही बस काम
मन को आज भी भाता
.....








पवन तुम्हारी
बातें बोले
दिनकर अंखियाँ
तुमसे खोले
तुमसे ही तो
मेरे मन की
मैना
मेरे अंतर डोले
आज उडूं मैं
चिडया बनकर
तुम भी
मेरे साथ में आओ
हौले-हौले
मन सितार पर
प्रेम भरी
एक सरगम गाओ ||
....



गीता पंडित

Friday, October 7, 2011

मेरी राह देखती होगी... गीता पंडित


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कहीं सुहानी सुबह एक तो ,मेरी राह देखती होगी
इसीलियें तो पल के पन्नों, पर लिख लायी प्रीत नयी,
तुम भी गाओ मेरे संग में जलतरंग मन के बज उठें
धरती क्या फिर अम्बर पर भी दिख पायेगी प्रीत नयी||


गीता पंडित

Thursday, October 6, 2011

स्त्री ...गीता पंडित



स्त्री ____


बचपन से ही जान गयी थी
प्रेम था केवल सपना ,
मेरे मन का हिस्सा ही तो
था केवल मेरा अपना ,
लेकिन वो भी छूट रहा था
व्यथित हुई मैं उस पल तो,
फिर भी शेष कहीं पर रखा
मैंने अंतर के जल को ||


गीता पंडित

वरना ये एक धोखा है ...गीता पंडित

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कभी जलाने
से पहले
रावण को
हमने सोचा है,
कितने रावण
मन के अंदर
जिनको हर पल भोगा है,
दूर करें
हर एक बुराई,
पहले
अपने मन - तन की ,
तभी तो
सच्चा
जलना होगा
वरना ये तो धोखा है


गीता पंडित

Wednesday, October 5, 2011

विजय-दशमी की बधाईयाँ ... गीता पंडित


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कभी - कभी
जीवन के
पथ में
एसे मोड भी आते हैं,
सब कुछ
अच्छा
होता है पर
पथ,
पथ में खो जाते हैं
आशा की
नगरी में फिर भी
मन के पाखी भटकें ना
इसीलियें
हम
विजय दिवस पर
आस बीज बो जाते है"


विजय-दशमी के पावन पर्व पर सभी के मन प्रफुल्लित हों...
.दशहरे की हार्दिक बधाई स्वीकार करें.............. गीता पंडित
.... गीता पंडित