विजय-दशमी की बधाईयाँ ... गीता पंडित
..
...
कभी - कभी
जीवन के
पथ में
एसे मोड भी आते हैं,
सब कुछ
अच्छा
होता है पर
पथ,
पथ में खो जाते हैं
आशा की
नगरी में फिर भी
मन के पाखी भटकें ना
इसीलियें
हम
विजय दिवस पर
आस बीज बो जाते है"
विजय-दशमी के पावन पर्व पर सभी के मन प्रफुल्लित हों...
.दशहरे की हार्दिक बधाई स्वीकार करें.............. गीता पंडित
.... गीता पंडित
15 comments:
कभी जलाने से पहले , रावण को हमने सोचा है ,
कितने रावण मन के अंदर जिनको हर पल भोगा है,
दूर करें हर एक बुराई ,पहले अपने मन - तन की,
तभी तो सच्चा जलना होगा वरना ये तो धोखा है...
गीता पंडित ..
फेसबुक ..
Ratnesh Tripathi
दशहरा की बहुत बहुत शुभकामनाएं !
फेसबुक.
Premdaya Pawar
Happy Dussera to u n ur family.
फेसबुक .
Anil Kumar Yadav
aap ko vijaya dashami ki bahut bahut shubhkamnayen........
फेसबुक..
चेतन रामकिशन
आओ विजय के पर्व से सीखें, सत्यव्रत का ज्ञान!
अपने मन में लायें नम्रता, त्याग चलें अभिमान!
यदि सोच को हमने अपनी नहीं बनाया बेहतर,
कहाँ मनों से हो पायेगा, रावण का अवसान!
आओ सत्य के पदचिन्हों को, करें मनों में धारण!
तभी सार्थक हो पायेगा, पुतला दहन दशानन!"
फेसबुक.
Anil Mishra
Wah Gita ji kya baat he,hradaya se badhai deta hoo,
Gita bhi hai,
Pandit bhi hai.
Gyan aur pratibha se
Mahima mandit bhi hai,
फेसबुक.
Suneel R Karmele
बहुत सुन्दर पंक्तियॉं ;;;; विजयादशमी पर हार्दिक शुभकामनाऍं
फेसबुक .
Sanjay Joshi Sajag
bhut hi sunder ..abhi vykti....
फेसबुक .
Atul Kanakk
aapko bhi vinamra shubhakaamnayen
फेसबुक .
Prarthana Gupta
geeta ji is aasha ki nagri mein toh bar-bar ulaz jati hoon.....
"उलझन सुलझन, सुलझन उलझन
ये तो जीवन की शाला है
लेकिन आशा के द्वारे पर
हमको अलख जलाते चलना "
.गीता पं .
फेसबुक .
Gita Dev
Bahut sunder.... Vijayadashmi ki shubh kamanayain sweekar karain..
फेसबुक.
आज फिर हम छल से
या बल से
फूँक देंगे
अपनी औकात से बड़े और ऊंचे
कुछ पुतले
और होंगे खुश
थूक कर आसमान पर I
अपनी दुर्बलता
निरीहता
और विवशता की चिंगारी से
जला देंगे
ज्ञान और विवेक को
बिना अपने अन्दर बैठे
काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार को
हानि पहुँचने दिए
और बिना इन पर विजय पाए
मना लेंगे विजय दशमी I
इतिहास की भूलों पर उत्सव मनाना
हमारी आदत सी बन गयी है I
पहले भी हम
आज ही के दिन
तोड़ चुके हैं
उस सीढ़ी के पाए
जो हमारे लिए
स्वर्ग को सुगम बना सकती थी I
अपने अल्हड़पन में
फूँक चुके हैं उस स्वर्ण नगरी को
जिसमे बसी
तथाकथित बुराई को दूर करके
हम सोने से खरे हो सकते थे I
काट चुके हैं नाक
उस विश्वास की जो
अपने वश में आई अबला का
स्पर्श तक नहीं करता ;
जिसे हम स्वयं
न दे सके कोई सुख
सुरक्षा ,
न ला सके जिस पर आस्था
उसके सम्पूर्ण समर्पण के बाद भी ,
उतार दिया संदेह के अग्नि कुंड में
और कर दिया इतना बाध्य
की वह समां गई
स्वमाता की गोद में I
यदि इसी विजय का उत्सव मना रहे हैं हम लोग तो ,बधाई ...अशोक अग्रवाल
फेसबुक.
Prema Jha
Bahut sunder Gita mam!!
फेसबुक .
चेतन रामकिशन
दीदी जी सही कहा आपने
आशावान तो होना ही होगा! नमन आपकी पंक्तियों को
Post a Comment