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देख सकती हूँ भूखा स्वयम को
क्या देख पाउंगी भूख से दम तोड़ते हुए तुम्हें
भूखे भेडिये बैठे हैं निशाने साधे
और मैं फटे चीथड़ों में तन को ढांपती
कभी देखती हूँ तुम्हें,
कभी अपने आप को,
कभी कौने में ओंधे मुंह बेहोश पड़े नर पिशाच को
और कभी मंदिर में सजे उस भगवान को
पूंछती हुई कि कहो मेरा दोष, मेरा पाप
क्यूँ है मेरा ऐसा वर्त्तमान
क्यूँ था मेरा बेबस बीता हुआ कल
और ऐसा ही होगा मेरा तुम्हारा आने वाला कल
निरपराध होते हुए भी
मेरा जन्म केवल अपराध भरा
उस पर तुम्हारा जन्म
उससे भी बड़ा अपराध
हाय !!!!!
कैसी हतभागिनी मैं
और तुम
किसी के लियें नहीं वांछनीय
क्यूँ ??
.... गीता पंडित
11 comments:
Prarthana Gupta औरत को हमेशा से ही कमजोर,लाचार,दयनीय,आश्रित आदि शब्दों से सुशोभित किया गया है.....पर विडम्बना यह कि जिसने किया वह ही पूर्ण रूप से उसी पर आश्रित है....उसी का घर-परिवार-रिश्ते.....जिम्मेदारी हमारी.....और हमारा क्या ????? जा अपने घर जा.....कौन सा...????बेटी अब वही तुम्हारा घर है......."औरत घर की इज्ज़त है"......मुझे तो हँसी आती है दोहरे मापदंड़ो पर.....
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Dara Singh Chauhan
एक अबला नारी के लिए आपने जो लिखा है वो सत्य है आपका दिल से हार्दिक अभिनंदन
स्त्री अबला नहीं है
लेकिन ये समाज और उसकी परिस्थितियाँ
उसे अबला बनने पर विवश करती हैं..
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Mahesh Shah
very impressive words and satya vachan
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Ashok Aggarwal
निरीह .....निरपराध ...वो बेचारी अगर भगवान को न कोसे तो और करे भी क्या .....वही तो है एक .....कहने को भी और करने को भी
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Kavi Arjun Alhad
GEETA DIDI
BAHUT BAHUT GRAATT
UCHCH CHINTAN.....
किसी के लिये वांछनीय नही.................
फिर भी करता है विधाता
पूजन,,
अधूरा हैँ तुम बिन सृष्टि
सृजन,,,,
अबला
नही तुम ज्वाला हो,,
रणचण्डी हो
नर मुण्डो की माला हो,,
माया हो
प्रकृति हो,,
मानवता की
आकृति हो,,
ममता हो मूर्ति हो
माता हो,,
धरती पर प्रत्यक्ष
विधाता हो,,
भगवंत,संत,महंत,
पंथ हर ग्रंथ,,
गाता महिमा
तुम्हारी हो.!
अरे नारी....
नर क्या
तुम नारायण सेँ
भारी हो..!!
THANX 4 NICE POEM
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Aashish Kumar
This is crtainly da best decoration of words on ds topic ....simply amazing
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Ashish Pandey
आस्थाएँ विकलांग हो गईं ,क्षत-विक्षत विश्वास
श्रद्धा मनु के घर रोती है खंडित मन की आस ...
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Maya Mrig
कुछ सवालों के जवाब अभी आने बाकी हैं...भगवान दे या इंसान...जवाब तो देना ही होगा एक दिन....
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Prem Mathaliya
@Gita Ji........wah ji Adhbhoot Rachna hai!!Wahhhh
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Prabhat Pandey
' अहल्या ही अहल्या नज़र आती चारों ओर ' ..... और, इस पर हम और महज़ हमारी बातें ही ....
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