Monday, June 4, 2007

आरज़ू ....

.....
.....

नहीं जानती मैं ,
जानना भी नहीं चाहती
नहीं समझती मैं ,
समझना भी नहीं चाहती,

रहने दो बंद सभी
खिङकी-दरवाजे,
छुपा रहने दो यूँ ही,
बिना रोशनदान के,
दरो-दीवारों में,

जानती हूं मैं ,
भटक रही है आत्मा,
आरज़ू की यहीँ-कहीँ,
ढूंढ रही है मुझे,
फिर से अपने चंगुल में,
दबोचने के लियें,

लेकिन अब मैं,
तैय्यार नहीं.

गीता (शमा)

Sunday, June 3, 2007

कोई मीत नहीं..,

.....
.....

कोई मीत नहीं..,
कोई गीत नहीं..,

एक उम्र रो गई.,
चुप-चाप सो गई,

कांधा कोई नहीं..,
कोई कफ़न नहीं.,

दो गज ज़मीं नहीं,
आँसू की लङी नहीं,

जन्मों से मुक्त हुई,
"ओम" में लुप्त हुई,

सब कुछ है वही,
बस मैं नहीं रही,

गीता (शमा)