Monday, December 9, 2013

एक छोटी कविता ..... गीता पंडित

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बढ़े आ रहे हैं ___
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नहीं 
अंकुरित है 
ये दिल की ज़मीं, 
पर 
अंकुर ये शब्दों में उपजा रहे हैं 

रुका 
जो समय तो 
ये जग भी रुका, 
पर 
बने कारवाँ हम बढ़े आ रहे हैं । 

… गीता पंडित 

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