हिंदी और गुजराती दोनों भाषाओं में यह नवगीत आपके सामने प्रस्तुत है .. :)
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આજ હૈયામાં કોઈ છંદ ગુંજતો નથી ___
ચાલો મળીને ગાઈએ
એવાં કોઈ ગીત
ધરતી લહેરાય ને ગગન વરસે ગીત
આંખોની કીકીના માળામાં
રેતીનાં રણ કેવા રેલાયાં
કુમળી કળીના સપનાં
જુઓ ચોકમાં વેરાયા
નાનકા હાથોમાં
દફતરને બદલે
કામના બોજા થોપાયા
રહ્યાં દૂર લાડ ને રમકડા
ધમકી ને અપમાન
જીવનના રૂપ બિહામણા
નહિ નહિ .. આ ચિત્ર નહિ
ગીત એવું ગુંજીએ
સપનાં સોનેરી આંખોમાં આંજીએ
હૈયામાં છંદ નથી ગુંજતો
તો ચાલો પહેલા મનમાં
નવા તાલ છંદ જગાડીએ
પગ તા થઇ તા થઇ
નાચે મન ડોલે
એવી ધૂન સજાવીએ
કૂણી કુંપળ કોળાશે
મનનું જો માને
નવી ઉમંગના દીવડા પેટાવીએ
છે આકુળ વ્યાકુળ આ ધરા
નવી આસ્થા નેહ વિશ્વાસ ના વારિથી સિંચીએ
ચાલો ફરી
બનીએ અજવાળાના સંગી
દીવડા ગાય આપણાં ગીત
ચાલો મળીને ગાઈએ
એવાં કોઈ ગીત
ધરતી લહેરાય ને ગગન વરસે ગીત
नहीं छंद है आज पल के हृदय में ___
चलो फिर से गायें
वही गीत जिससे
धरा लहलहाए, गगन गीत गाये।
अभी नयन की
पुतलियों के घरौंदों
में रेती के तू़फान कैसे भरे हैं
कोमल कली के
सपनों को देखो तो
हर एक चौराहे पर आकर झरे हैं
वो नन्हे से हाथों में
पुस्तक के बदले
झाड़ू औ कटके के करतब चले हैं
खिलौनों के बदले अरे! गालियों के
ये कैसे ऩजारे जो सम्मुख पले हैं
नहीं ये नहीं गीत
वो गुनगुनायें कि
जिससे सपन फिर बने मीत आये।|
नहीं छंद है आज
पल के हृदय में तो
पहले चलो छंद मन में उगायें नयी ताल में मन
करे ता ता थैय्या
सुर की धरा ऐसी मन में सजायें
पनपेंगे बिरवे
कभी तो सुनो तुम
नयी आस के दीप मन में जलायें
बड़ी ही विकल है धरा अब भी देखो
नयी आस्था, नेह, विश्वास लायें
चलो फिर बनें हम
उजाले के साथी
हमारी कथा फिर से दीप गाये
चलो फिर से गायें
वही गीत जिससे
धरा लहलहाए, गगन गीत गाये।||
चलो फिर से गायें
वही गीत जिससे
धरा लहलहाए, गगन गीत गाये।
अभी नयन की
पुतलियों के घरौंदों
में रेती के तू़फान कैसे भरे हैं
कोमल कली के
सपनों को देखो तो
हर एक चौराहे पर आकर झरे हैं
वो नन्हे से हाथों में
पुस्तक के बदले
झाड़ू औ कटके के करतब चले हैं
खिलौनों के बदले अरे! गालियों के
ये कैसे ऩजारे जो सम्मुख पले हैं
नहीं ये नहीं गीत
वो गुनगुनायें कि
जिससे सपन फिर बने मीत आये।|
नहीं छंद है आज
पल के हृदय में तो
पहले चलो छंद मन में उगायें नयी ताल में मन
करे ता ता थैय्या
सुर की धरा ऐसी मन में सजायें
पनपेंगे बिरवे
कभी तो सुनो तुम
नयी आस के दीप मन में जलायें
बड़ी ही विकल है धरा अब भी देखो
नयी आस्था, नेह, विश्वास लायें
चलो फिर बनें हम
उजाले के साथी
हमारी कथा फिर से दीप गाये
चलो फिर से गायें
वही गीत जिससे
धरा लहलहाए, गगन गीत गाये।||
मेरे आने वाले नवगीत संग्रह 'लकीरों के आर-पार' से
गीता पंडित
1 comment:
http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2013/08/7.html
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