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बजी द्वार की साँकल फिर से
मन को कैसे धीर धराये |
आज रैन की इस बेला में
बिन आहट के बादल छाये,
मन की कोपल फिर से भीगीं
फिर कंपन के मादल भाये,
सुधि के सिंधु नाव चले फिर
फिर-फिर मन में पीर भराये |
मिलन हमारा पलभर का था
जीवन भर की रही कमाई,
नेह - निधी ये कैसी जिससे
अपने मन की हुई सगाई ,
आज झरोखे फिर से चौंके
खडा कौन जो नीर बहाये |
बजी द्वार की साँकल फिर से
मन को कैसे धीर धराये ||
गीता पंडित
(मेरे आने वाले संग्रह से )
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बजी द्वार की साँकल फिर से
मन को कैसे धीर धराये |
आज रैन की इस बेला में
बिन आहट के बादल छाये,
मन की कोपल फिर से भीगीं
फिर कंपन के मादल भाये,
सुधि के सिंधु नाव चले फिर
फिर-फिर मन में पीर भराये |
मिलन हमारा पलभर का था
जीवन भर की रही कमाई,
नेह - निधी ये कैसी जिससे
अपने मन की हुई सगाई ,
आज झरोखे फिर से चौंके
खडा कौन जो नीर बहाये |
बजी द्वार की साँकल फिर से
मन को कैसे धीर धराये ||
गीता पंडित
(मेरे आने वाले संग्रह से )
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