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(मेरे काव्य संग्रह से )
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हर सुबह
लेकर जो आये
भोर की पहली किरण,
जाग उठें
फिर से मन के,
खोये हुए सारे सपन,
आस्था
और नेह की
बाती जले जलती रहे,
और थोड़ी
सी महक दे
जाये बासंती - पवन,
धूप को
आना है आये,
तुम उसे ना रोकना,
छाँव बन
कर विटप की मन,
अपने ऊपर ओढना,
हाँ थकाने
आयेंगे पल
अंक में भरकर हिमालय,
स्वेद-कण
मोती की तरह
हौले - हौले पोँछना,
ऐसे सौरभ
की घड़ी फिर
से ना आये क्या पता,
आज है जो
गीत - सरिता,
कल भी होगी क्या पता,
बाँध लो
मन इन पलों को,
आज छंदों के वसन में,
और
उतारो गीत में तुम
प्रेम का पूरा पता ||
गीता पंडित
(मेरे काव्य संग्रह से )
4 comments:
कविता में पूरा पता तो लिख दिया है आपने। अच्छी रचना ।
सुंदर कविता..
सुंदर प्रस्तुति
वाह , सुंदर भाव चित्रण । रचना बेहत ही खूबसूरत बन पडी है
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