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कौन से थे वो बिंदु जिसमें,
उलझ कर मन रह गया,
एक पिपासित चातक बनकर,
शब्दो मे क्यूँ बह गया,
शब्द - अर्थ में खोकर अंतर,
अब कैसा पगलाया सा,
जाने क्या कहना चाहे,
ना जाने क्या अर्थ कह गया||
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शब्दों के जब अर्थ व्यर्थ हों,
और मौन हो जायें अनसुने,
पल पल में पल की ही काया,
अपने में हो जाये शत-गुने,
सम्मुख आने वाले पथ जब
पथ को पथ में ही खो दें,
धीरे से फिर व्यथा वेदना
अश्रू अंतर्मन में बो दे
गीता पंडित (शमा)
13 comments:
इन छोटी कविताओं के अर्थ गहन हैं,
मन के मानसरोवर में ये बह चले हैं
बहुत सुन्दर.......
excellent mam........कविताये तो शब्दों से बनती है,हर शब्द का अपना-अपना महत्व है!कविताये कभी छोटी नहीं होती है,यह अपने अन्दर एक बहुत ही बड़ी बात छुपाये रहती है...यह उस कविता के पढने वाले पर निर्भर करता है की वो इसे कहाँ तक समझ पाया........एक बहुत ही खूबसूरत रचना mam
excellent mam........कविताये तो शब्दों से बनती है,हर शब्द का अपना-अपना महत्व है!कविताये कभी छोटी नहीं होती है,यह अपने अन्दर एक बहुत ही बड़ी बात छुपाये रहती है...यह उस कविता के पढने वाले पर निर्भर करता है की वो इसे कहाँ तक समझ पाया........एक बहुत ही खूबसूरत रचना mam
वाह! बहुत सुन्दर लिखा है ये छोटी तो हैं किन्तु बहुत उच्च विचार वाली लगती हैं
बहुत सुन्दर.......वाह!
कौन से थे वो बिंदु जिसमें,
उलझ कर मन रह गया,
एक पिपासित चातक बनकर,
शब्दो मे क्यूँ बह गया,"
****"बहुत कुछ कहने को था, बहुत कुछ सुन ने को,पर बहुत देर हो गयी थी;और अब सब शब्द जमीं में गद गए the"--अमृता प्रीतम की जुबानी शब्दों की एक ये भी कहानी है*****
aapki choti kavitaon ne to badi kavitaon ko peeche chod diya. bahut hi pyari si, bahut hi achhi si, choti si kavitayen. accha laga.
बहुत सुंदर!
Wah..Wah...
सुंदर भाव बोध..
आपके ब्लाग पर आकर प्रसन्नता हुई...
bahut hi sundar.. kam shabdo mein bahut ghahri baat.. bahut badhai..
अच्छी क्षणिकाऍं हैं, बधाई।
शब्द - अर्थ में खोकर अंतर,
अब कैसा पगलाया सा,
जाने क्या कहना चाहे,
ना जाने क्या अर्थ कह गया||
Superb
bahut sundar bhav...
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