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तुम क्या नहीं हो..माँ
आँख हो मेरी
देखती हूं जिससे
मैं ब्रहमाण्ड,
मेरी धमनियों में
बहता रक्त हो जो
देता है मुझे जीवन,
हो हड्डी,माँस-मज्जा.
जो देती है मुझे ताकत
पाँवों पर अपने
खडे होने की,
तुम दिमाग हो
जो कराता है अहसास
मुझे सही गलत का,
तुम हो ईश्वर,
क्योंकि तुम हो कारण सृष्टि का
निमित्त हो उत्पत्ति का,
तुम माँ हो...माँ
तुम्हें शत - शत - नमन ॥
गीता पंडित (शमा)
2 comments:
तुम दिमाग हो
जो कराता है अहसास
मुझे सही गलत का, ........... माँ की सच्ची तस्वीर
BAhut hi saarthak chitran MAa ka...!
किन शब्दों से परिभाषित करू …?
प्रारंभ से अंत तक सर्वश्य
तुम ही तुम हो ….!
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