मिल जाये,अंधकार को,कितनी भी आजादी,
बुझ पायेगी ना, अंतर्मन जो जलाये बाती,
डिगें ना प्रण से, कहतीं वेद - रिचाएं सारी,
ले देख देव-लोक भी,आज हिय की आचारी,
धारे देखो, निस्वार्थ - भाव से, नदी बहाती,
तरु - वर की सौगातें, नित ही हमें लुभातीं,
सूरज की थाती बिना मोल, कैसे बिक जाती,
थक जाने पर, लोरी गाने क्यूँ रजनी आती,
बदलती ॠतुएँ , गुण जीने के सिखला जातीं,
आस का बिगुल बजाकर भोर किरण मदमाती,
ओढ अम्बर की चादर, झूम कर बदली गाती,
अवनि भी बूंदों संग, ताल से ताल मिलाती,
योगी-यति,मुनि,ग्यान-वान साधक और ध्यानी,
पाते अंतर में उस को, जो है सबका मानी...,
मोह - पिपासा में खो जाती ,अंतर की वाणी.,
आसक्ति करती नर्तन,मन - उपवन में अभिमानी,
हाय ! रह ना पाती, मन की सुंदरता न्यारी,
पग-पग पर वो,अपनी ही मृग-तृष्णा से हारी,
जग मिथ्या,केवल जनम-मरण की एक निशानी,
माटी का तन, हर पल लिखे, एक नयी कहानी ||
गीता पंडित (शमा)
2 comments:
हाय ! रह ना पाती, मन की सुंदरता न्यारी,
पग-पग पर वो,अपनी ही मृग-तृष्णा से हारी,
जग मिथ्या,केवल जनम-मरण की एक निशानी,
माटी का तन, हर पल लिखे, एक नयी कहानी ||
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aah,sach to yahi hai,bahut saral dhang se jeevan ka darshan diya
जग मिथ्या,केवल जनम-मरण की एक निशानी,
माटी का तन, हर पल लिखे, एक नयी कहानी ||
Bahut khubsurat, bahut sahi
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