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बरसकर भी ना बरसे जो
न जाने कैसी बदली है,
नयन की कोर पर अटकी
सपन की भोर गीली है,
तुम्हारी याद का सावन
घिरा है आज फिर से क्यूँ
बना है पाखी मन फिर से,
धरा की भोर सीली हैं |
ना जाने क्यूँ नहीं आये
कहा था आऊँगा एक दिन
तुम्हारे बिन समझ लो तुम
नहीं संध्या सहेली है ,
चले आओ नहीं लगता कि
ये अब मन तुम्हारे बिन
तुम्हारे रंग से ही मीत !
मन चूनर ये पीली है | |
..गीता पंडित..
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बरसकर भी ना बरसे जो
न जाने कैसी बदली है,
नयन की कोर पर अटकी
सपन की भोर गीली है,
तुम्हारी याद का सावन
घिरा है आज फिर से क्यूँ
बना है पाखी मन फिर से,
धरा की भोर सीली हैं |
ना जाने क्यूँ नहीं आये
कहा था आऊँगा एक दिन
तुम्हारे बिन समझ लो तुम
नहीं संध्या सहेली है ,
चले आओ नहीं लगता कि
ये अब मन तुम्हारे बिन
तुम्हारे रंग से ही मीत !
मन चूनर ये पीली है | |
..गीता पंडित..
7 comments:
waoooooooo..luv it....super lke from me n mummmaaa.... :)
आहा सीपी !!!!!
बहुत अच्छा लगा देखकर कि तुम्हें और भाभो को तो पसंद आया...
विभोर तो कभी पढता ही नहीं है....कहता है अंगरेजी में लिखोगी तभी पढ़ना है .... हा हा ...
ढेर सारा प्यार
गीता
बहुत सुन्दर । अत्यन्त भावनात्मक..
namaskar geeta ji bahut dino baad aapki kalam se nikle udgaaron se avgat hua hoon bahut hi achchha lag raha hai praveen ji kahaan hai aajkal
शशि जी...
आभार...
अच्छा लगा आपको देखकर...
कैसे हैं आप...?
सस्नेह
गीता
आभार ...अमित जी...
शुभ-कामनाएं
सनेह
गीता
बहुत सुन्दर
http://shayaridays.blogspot.com
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