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1)
2)
ओम ऐम ह्रीं क्लीम वोटराय नम:
यही जाप करते हुए दिख रहे वो
बहुत उनमें अनपढ़ अंगूठा लगाते
किस्मत हमारी मगर लिख रहे वो
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गीता पंडित
22/4/14
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1)
साँझ के द्वार पर फिर उदासी खड़ी
सोचता है ये मन क्यों उबासी बड़ी
ये हवा जो चली विष भरी है यहां
आसुरी है क्यों पल और बासी घड़ी
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2)
ओम ऐम ह्रीं क्लीम वोटराय नम:
यही जाप करते हुए दिख रहे वो
बहुत उनमें अनपढ़ अंगूठा लगाते
किस्मत हमारी मगर लिख रहे वो
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गीता पंडित
22/4/14
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