Monday, April 21, 2014

मुक्तक ........गीता पंडित

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1)

साँझ के द्वार पर फिर उदासी खड़ी 

सोचता है ये मन क्यों उबासी बड़ी 

ये हवा जो चली  विष भरी है यहां

आसुरी है क्यों पल और बासी घड़ी 
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2)

ओम ऐम ह्रीं क्लीम वोटराय नम:

यही जाप करते हुए दिख रहे वो 

बहुत उनमें अनपढ़ अंगूठा लगाते 

किस्मत हमारी मगर लिख रहे वो 
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गीता पंडित
22/4/14

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