Tuesday, August 14, 2012

रक्त पिपासक समय हो रहा ... गीता पंडित ( पन्द्रह अगस्त की पूर्व संध्या पर ) सभी भारतवासियों को शुभ कामनाएँ ( देश विदेश )


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रक्त पिपासक समय हो रहा 
अब क्यूँ मूक बने डोलो

प्राचीरों में दबी घुटी सी
सोई किसकी सिसकी है
तहखानों में बंद राज सी
देखो किसकी हिचकी है

बच्चा –बच्चा बने सिपाही
गद्दारों को हो फांसी
जो भी देश के दुष्मन हैं
वो सारे हों वनवासी

जात - पात भाषा के झगड़े 
अब तो मन-तन पर तोलो

पैंसठ वर्ष हो गये अब क्यूँ
नहीं दिखा भाईचारा
कौन नहीं है बोलो माँ के
लियें चमकता इक तारा

बंदी हुई भावना क्यूँकर
स्वार्थ हुआ सब पर भारी
राजतंत्र के सम्मुख घुटने
टेक रही अब लाचारी

बनकर के ललकार चलो तुम 
मुंह अपना अब तो खोलो
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गीता पंडित 
15 अगस्त 12 



3 comments:

राजेंद्र अवस्थी. said...

वाह अचि सुंदर रचना....

S.N SHUKLA said...


बहुत ख़ूबसूरत , बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , आपके स्नेह और समर्थन की प्रतीक्षा है .

Satish Saxena said...

बहुत अच्छा प्रभावशाली लेखन है आपका ! बधाई !