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प्रेम मेरा वसन है
आत्मा है राग
अनुराग है अस्तित्व मेरा
गाती रहूंगी जीवनपर्यंत
तोडती रहें परिस्थितियाँ
नहीं डिगा पाएंगी पथ से
आयरन खाकर हो गयी हूँ आयरन
चेरी हूँ विरह की
लिखती है मेरी लेखनी व्यथा
जो टपकती है तुम्हारी पलकों से
मेरी आँख में
व्यथा जो करती है नर्तन
धुरी पर प्रेम की
प्रेम जो अनश्वर है
अनादि है
हो गया है ओझल
हमारी आँख से
या
हो गये हैं गांधारी हम ही
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गीता पंडित
1 अगस्त / 12
1 comment:
प्रेम मेरा वसन है,
आत्मा है राग,
सुंदर रचना.......।
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