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नई राहें बनाई हैं कभी जब पथ रुके पथ में
न जाने क्यूँ अभी तक सामने मंजिल नहीं पाई
घिरे घनघोर हैं बादल अँधेरे में घिरे पनघट
फिर भी आस की चूनर कभी मन ने ना ढलकाई
गीता पंडित
26 गस्त 12
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नई राहें बनाई हैं कभी जब पथ रुके पथ में
न जाने क्यूँ अभी तक सामने मंजिल नहीं पाई
घिरे घनघोर हैं बादल अँधेरे में घिरे पनघट
फिर भी आस की चूनर कभी मन ने ना ढलकाई
गीता पंडित
26 गस्त 12
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