भाव तुम्हारे तुम्हें समर्पित, अंतर्मन के धारे हैं, गीतों में भरकर जो आये मन के वेद उचारे हैं||
Saturday, November 19, 2011
चलो गायें फिर से वो ही गीत जिससे, धरा लहलहाए, गगन गीत गाये ... गीता पंडित
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चलो गायें
फिर से वो ही गीत जिससे
धरा लहलहाए, गगन गीत गाये |
अभी नयन की
पुतलियों के घरौंदों में
रेती के तूफान आते दिखे हैं,
कोमल कली के
सपनों को देखो हर
एक चौराहे पर आकर बिके हैं ,
वो पुस्तक के
बदले नन्हे - हाथों में
झाडू - खटके के करतब चले हैं,
अरे ! गालियों
के खिलौनों के बदले ये
कैसे नजारे जो सम्मुख पले हैं,
नहीं ये नहीं
गीत वो गुनगुनायें हम
जिससे सपन फिर बने मीत आये |
नहीं छंद है
आज पल के हृदय में तो
पहले चलो छंद मन में उगायें ,
नयी ताल में
मन करे ता-ता थैय्या
सुर की धरा एसी मन में सजायें ,
सुनो तुम कभी
फिर से पनपेंगें बिरवे
फिर आस के दीप मन में जलायें
विकल है ये
कितनी धरा अब भी देखो
नयी आस्था, नेह, विश्वास लायें ,
अभी हमको
बनना उजाले का साथी
हमारी कथा फिर से दीप गाये ,
धरा लहलहाए गगन गीत गाये | |
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चुटकी बजते ही जैसे विधार्थीकाल में पँहुच जाना या उस समय मी स्मृतियों में डूब जाना जब मैं भी कोटा और भोपाल में हायर
क्लास के विधार्थियों को पढ़ाया करती थी ....कितना सुखद होता है आज जान पायी.... सच कहूँ तो मेरे लियें ये पल(18 नवंबर) जो सनसिटी स्कूल (गुडगावां)(G TV.) विद्यार्थियों के साथ व्यतीत हुए ... सुखद स्मृतियों के अंग बन गये..सुशीला जी!(जो वहाँ हिन्दी की अध्यापिका के साथ कवितायें भी लिखती हैं ) आपके, विधार्थियों के और प्रधानाचार्य सहित और सभी के स्नेह और आत्मीय व्यवहार के लियें हृदय से आभारी हूँ... :))))
इस आयोजन से पहली रात्रि में अचानक कुछ भाव उमड़े और ये नवगीत बन गया जो समर्पित है विशेष रूप से इस स्कूल के विधार्थियों को ...
गीता पंडित
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4 comments:
बेहतरीन गीत....
behat vicharon se labarej geet. badhai.
बहुत सुंदर भावों से सजा गीत है, गीता दी.....पढ़कर सचमुच मन में आशा के कई नन्हे नन्हे दीप जगमगा उठते हैं.....उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई......
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Sushila Shivran
गीता पंडित जी की विद्यालय परिसर में उपस्थिति, नामी-गिरामी विद्यालयों जैसे DPS, AMITY, BLUE BELLS आदि को आँकना, अपने श्रीमुख से विद्यार्थियों में हिन्दी के प्रति रूझान पैदा करने की अभिप्रेरणा आदि हमें कृतार्थ कर गई ! उनसे वार्तालाप एक सुखद अनुभूति रहा ! उनके निवास से विद्यालय के बीच के डेढ़ घंटे का सफ़र हमें वैचारिक और भावात्मक स्तर पर जोड़ गया :)........................................................सच कहूँ तो सुशीला जी मेरे लियें भी ये पल जो आपके साथ और विद्यार्थियों के साथ व्यतीत हुए ... सुखद स्मृतियों के अंग बन गये .. आपके , विधार्थियों के और प्रधानाचार्य सहित और सभी के स्नेह और आत्मीय व्यवहार के लियें आभारी हूँ... :)
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