Saturday, November 5, 2011

बोन्ज़ाई.........गीता पंडित




क्या ना जाने आज पथ में
खो रहा है |


क्यूँ नहीं पल की कथा का

आज तक हिस्सा बने ,

नेह के बीने थे कण-कण

क्यूँ नहीं किस्सा बने ,


मन का बरगद बोन्ज़ाई
हो रहा है,
क्या ना जाने आज पथ में
खो रहा है ||


गीता पंडित


(मेरे नवगीत के अंश)

26 comments:

गीता पंडित said...

फेसबुक के कमेंट्स...


राजेश चड्ढ़ा

जैसे....छांव छोटी.....वैसे....सुख भी छोटे....ख़ुशियां.....बोन्ज़ाई...

गीता पंडित said...

Mahesh Rathi

tumane meri jade kaat kar mujhe bonsai ban diya...tumane jinda rakha sukriya iska....mujhe meri zameen milane do ...meri uchai bhi dikhegi ,ek din sabko![from my diary]

गीता पंडित said...

बरगद मन अगर बोनसाई हो जाये तो जीवन के बड़े कैनवास पर रखकर देखें ...और उस पीड़ा को भी ..... जब सारी उम्र मन को बरगद बनाने में लगी लेकिन अंत में देखा तो बौनापन अरे ये क्या...??

गीता पंडित said...

Mukta Sharma

Gita ji, Bonsai chhota hai par adhoora nahi, uska kad chhota hai, vajood nahi !!

गीता पंडित said...

Chandrasekhar Nair

दीदी बहुत सुन्दर ..

मन का बरगद मांगता है एक आकाश और ताज़ी हवा ..
खिड़कियाँ अब फिर खोल ली है हमने हमने ..
यकीन है .. यह बोन्ज़ाई फिर बन जाएगा बरगद .

गीता पंडित said...

Suman Keshari Agrawal

जब बोन्जाई ने कवि के मन के आकाश में आँखें खोलीं तो वह झूम उठा और अविरल गति से आकाश छूने चल दिया...,

गीता पंडित said...

Indira Poonawala

geeta ji achha hai

गीता पंडित said...

Ashish Pandey

दी ! बहुत सूक्ष्म भाव पकड़ा आपने
दया ,करुणा ,प्रेम सब है अब भी किन्तु
मन का बरगद बोन्ज़ाई हो रहा है...आभार

गीता पंडित said...

ये एक आम पीड़ा है जो मेरे शब्दों में अनायास आ गयी है.... जीवन की उलझनों में, या आपाधापी में मन को ही भूल गये ... मन जिसके बिना जीवन की परिभाषा क्या .... पलभर रूककर सोचना है हमें ...

गीता पंडित said...

Naveen Mishra

प्रेम का उत्कर्ष जब सागर-मन हो तो ऐसे सुन्दर भाव सृजित होते है.
छोटी सी कविता बोनज़ाई नहीँ विशाल बरगद की गुरुता है.

गीता पंडित said...

Alka Bhartiya

वाह बहूत ही उम्दा

गीता पंडित said...

Maya Mrig ‎....

जीने को चाहिए क्‍या बित्‍ता भर छावं...बोनसाई की...

गीता पंडित said...

Prabhat Pandey

बहुत खूब ..... बरगद मन बोनसाई होता हुआ .....

गीता पंडित said...

Amitabh Meet

वाह ! क्या बात है !!

गीता पंडित said...

Shrddha Jain

bargad ka bonsai hona bahut khoob kaha..

गीता पंडित said...

Shireen Yadav
Zakam mera hai dard mujhko hota hai,is zamane me kaun kiska hota hai,unhe neend nahi aati jo mohabat karte hai,jo dil ko todte hai wahi chain se sote hai.

गीता पंडित said...

Santosh Kumar Mishra

क्या ना जाने आज पथ में

खो रहा है .......Very Nice Geeta jee

गीता पंडित said...

Nirmal Paneri

नेह के बीने थे कण-कण..क्यूँ नहीं किस्सा बने !!!!!!!1

गीता पंडित said...

Misir Arun

संकटग्रस्त भौतिक जीवन आत्मरक्षा के सिवा कुछ सोंच पाता ही नहीं , उच्च मूल्यों की तरफ कुछ देख पाता ही नहीं ! सारा अवमूल्यन इसी से हो रहा है !

गीता पंडित said...

Naveen Mishra

कविता रागात्मकता से सम्पन्न प्रति संसार ही नहीँ रचती,अपितु अपने भीतर गहराई तक उतरती हुई अपने को बाहर से समेट कर कुछ पल उसमे खोना चाहती है

गीता पंडित said...

Hardaman Singh

Kavita bahut acchi hai, Gitaji as usual . Kya Na jaaney aaj path mein kho raha hai. well if path is raasta GITA JI,khona aur paana toh path mein hi hai, kabhi kabhi jaaney raastey chaltey chaltey bhi anjaaney lagtey hain, kuch khoney ka ehasaas tab bhi hota hai.

गीता पंडित said...

Vandana Gupta

uf .........gahan bhavon ki abhivyakti

गीता पंडित said...

Kamdev Sharma

dost bhavon ki sunder abhivyakti

गीता पंडित said...

Ratnesh Tripathi

बहुत सुन्दर !

sushila said...

"नेह के बीने थे कण-कण
क्यूँ नहीं किस्सा बने"

वाह! अत्यंत भावप्रवण और संवेदना से सराबोर अभिव्यक्ति !

आपकी लेखनी से विलंब से जुड़ रही हूँ इसका अफ़सोस है ।

sushila said...

"नेह के बीने थे कण-कण
क्यूँ नहीं किस्सा बने"

वाह! अत्यंत भावप्रवण और संवेदना से सराबोर अभिव्यक्ति !

आपकी लेखनी से विलंब से जुड़ रही हूँ इसका अफ़सोस है ।