Thursday, April 28, 2011

सच कहती हूँ ...


....
.....


बंजर ज़मीन में

पनपेंगे

बिरवे फिर से




बस

निकालने होंगे

रोडे - पत्थर

तोड़ - तोडकर




उग आये

कांटे - कीकर

काट - छाँटकर




धरती की

सुकोमल देह को

बनाना होगा

समतल




देकर नीर

अपने मन की

सरिता का




देखना

फिर से

एक दिन

लदी होंगी डालियाँ

फूलों से




नहीं

देखना

हाथ की लकीरों को




मृग-

मरीचिका

बन भटकाएँगी




हाँ ....

सच कहती हूँ ||



.. गीता पंडित ..

2 comments:

लीना मल्होत्रा said...

sundar abhivyakti

गीता पंडित said...

आभार ...
लीना जी ..


सस्नेह
गीता