नवगीत की पाठशाला २२ अप्रैल २०११ को
" समाचार " विषय पर ये नवगीत मेरा ...
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हर सुबहा के
समाचार में
ख़बर यही बस एक रही |
कितनी हत्याएं और चोरी
कहाँ डकैती आज पडी,
बलात्कार से कितनी सड़कें
फिर से देखों आज सडीं,
मानवता रो रही अकेली
नयनों में लग गयी झड़ी,
भरे चौराहे खडी द्रोपदी
अंतर विपदा रहे खडी ,
कोर नयन की
भीगी भीगी
सुबह से ही जगी रही |
खार हुए वो प्रेम प्रेम के
खेतों की फसलें सारी,
क्यूँ अग्नि में झोंकी जाती
वो ममता मूरत प्यारी,
भाई चारा दिखे कहीं ना
एक पंक्ति भी मिले नहीं
कैसी है ये पीड़ा मन की
बन जाती नदिया खारी,
मन के बरगद
धूप पसरती
छैय्याँ मन की ठगी रही |
समाचार को हुआ है क्या
कौन किसे समझायेगा,
फिर वो ही पनघट की बातें
औ चौपालें लायेगा,
बुझे हुए हर मन के अदंर
जला आस्था की ज्योति
मुस्कानों के फूल खिलाता
हर एक द्वारे जाएगा,
मन मंदिर है
प्रेम का मीते !
बात यही मन सगी रही ||
गीता पंडित
दिल्ली ( एन सी आर )
1 comment:
सच का विभत्स रुप दिखाया आपने ।
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