मन पखेरू उड चला ....
.....
जाने कहाँ
.....
मन पखेरू उड़ चला..
जाने किधर...जाने कहाँ..,
व्यथित मन..,
चिंतित चितवन..,
करते अनावरत मन-मंथन..
मन पखेरू उड़ चला
जाने किधर....जाने कहाँ...,
अनुत्तरित प्रश्न..
करते विह्वल.....
होता आर्द्र...अंतःस्थल.......
मन पखेरू उड़ चला...
जाने किधर..जाने कहाँ, .
कोमल मन..,
आभामय तन...,
निर्मित करता अनगिनत सपन..
मन पखेरू उड़ चला
जाने किधर...जाने कहाँ,
चित की अगन..,
हो कर मग्न.....,
नृत्य करती नित-नूतन..
मन पखेरू उड़ चला..,
जाने किधर...जाने कहाँ,
अश्रु कण...,
बन के घन....,
बरसें निरन्तर हो सघन..
मन पखेरू उड़ चला...,
जाने किधर...जाने कहाँ,
गीता (शमा)
1 comment:
कोमल मन..,
आभामय तन...,
निर्मित करता अनगिनत सपन..
मन पखेरू उड़ चला
जाने किधर...जाने कहाँ,
pakheru ki baat kar lein
ya swayam ke-man ki
bahut komalta hai bolon mein
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