Monday, April 16, 2007

मन पखेरू उड चला ....
.....
जाने कहाँ
.....

मन पखेरू उड़ चला..
जाने किधर...जाने कहाँ..,

व्यथित मन..,
चिंतित चितवन..,
करते अनावरत मन-मंथन..

मन पखेरू उड़ चला
जाने किधर....जाने कहाँ...,

अनुत्तरित प्रश्न..
करते विह्वल.....
होता आर्द्र...अंतःस्थल.......

मन पखेरू उड़ चला...
जाने किधर..जाने कहाँ, .

कोमल मन..,
आभामय तन...,
निर्मित करता अनगिनत सपन..

मन पखेरू उड़ चला
जाने किधर...जाने कहाँ,

चित की अगन..,
हो कर मग्न.....,
नृत्य करती नित-नूतन..

मन पखेरू उड़ चला..,
जाने किधर...जाने कहाँ,

अश्रु कण...,
बन के घन....,
बरसें निरन्तर हो सघन..

मन पखेरू उड़ चला...,
जाने किधर...जाने कहाँ,
गीता (शमा)

1 comment:

praveen pandit said...

कोमल मन..,
आभामय तन...,
निर्मित करता अनगिनत सपन..

मन पखेरू उड़ चला
जाने किधर...जाने कहाँ,


pakheru ki baat kar lein
ya swayam ke-man ki

bahut komalta hai bolon mein