Tuesday, April 17, 2007

..शमा और शलभ..

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दर्द क़ो... मैने जिया है.,
दर्द को ... मैने सिला है,
तुम शलभ क्यूं आह भरते,
दर्द…..मैंने भी सहा है.....

रोज़ जलती..उफ़् किये बिन,
मौत की..परवाह किये बिन,
रोज़ जीती……रोज़ मरती…..,
राह तेरी…रोज़ तकती…....,

मैं अधूरी हूँ... तेरे बिन..,
मैं जलूँ ...कैसे तेरे बिन.,
आ…तू मुझको साथ ले फ़िर,
हँसकर प्राण करें विसर्जित..,

साथ तेरा ..कुछ पलों का..,
फ़िर से मिलना फ़िर बिछड़ना,
दर्द में...... डूबी है जाँ पर,
अथक चलती…..रोज़ जलती…

तू मत तड़प, सुन बात मेरी,
रोशन करें .....रातें अंधेरी,
साथ होंगे…...रात भर फ़िर.,
बिछड़ने की क्या बात करनी.,

साथ होंगे..…रात भर फ़िर..,
बिछड़ने की क्या बात करनी..

शमा (गीता)

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