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बिन तेरे कुछ भी नहीं, ,
कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
मैं तेरे ही गीत गाती,
तुझको ही मैं गुनगुनाती,
बांसुरी तेरी बनाकर....
अधरों पे तुझको सजाती..
मैं बजाती......
मैं सजाती..
मैं सजाती..
बिन तेरे ना चैन पाती
बिन तेरे कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
तुम मेरी स्वाती सी बूंदें
जिसको ले मैं त्रिप्त होती,
तुम अमय हो उस मंथन का..
जिसको पी मैं अमर होती..
अमर होती,
अमर होती,
बिन तेरे ना चैन पाती..
बिन तेरे कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
तुम हो सुर सांसों क मेरे,
तेरे बिन वो रुक ही जातीं
मैं धरा तुम नभ हो मेरे,
देख जिसको मैं लजाती..,.
मैं लजाती,
मैं लजाती,
बिन तेरे ना चैन पाती,
तुझको ही बस गुन-गुनाती,
तुझको ही केवल बुलाती..,
तुझको ओठों पे सजाती......
बिन तेरे कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं
शमा (गीता)
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