Saturday, May 26, 2018

एक नवगीत-टहनी मुस्कराई -गीता पंडित

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टहनी मुस्कराई
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धूप पहनी है कि
टहनी मुस्कराई
और चेहरों पर
सुमन के गुनगुनाई


हैं लगे
पंछी चहकने
मन लगे
अब तो बहकने

देख आँगन में
चिरैय्या चहचहाई
धूप पहनी है कि टहनी मुस्कराई


आँख ने
सपने सजाये
पाँव भी
गति आप पाये

फिर सुबह की
पाँखुरी पर ओस आई
धूप पहनी है कि टहनी मुस्कराई ||

गीता पंडित
5/27/2018

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