Thursday, July 3, 2014

बस इत्ता भर ... (एक कविता) ......गीता पंडित

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अनंत यात्रा पर होता है तन 
कितने शहर 
कितने पथ 
कितने चौराहे 

कितने लोग 
जाने अनजाने 
कुछ कद में बड़े तो मन से छोटे
कुछ तन से छोटे और मन से बड़े 

अगम्य सुरंगें 
अगम्य नदियाँ 
ताल झरनों से गुज़रता हुआ 
भूल जाता है अपने गंतव्य को 

खोया-खोया सा स्वयं से करता है प्रश्न 
कहाँ जाना था 
कहाँ आ गया 

अनुत्तरित प्रश्न 
अनुत्तरित जीवन 

चार कहार 
और अजानी सी अंतिम यात्रा 

अहो !!!!!!!

बस इत्ता भर मिलना 
बिछुड़ना 
मिलना

निरंतर यात्रा में
होता है जीवन 
....... 




गीता पंडित 
3 / 7 / 14

1 comment:

Suman said...

arthpurn sundar rachana ...