Monday, June 30, 2014

बारिश ने फिर भिगो दिया है........गीता पंडित

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इस बार की बारिश ने फिर से शब्दों को भिगो दिया ... आप भी भीगें ..... भीगे या नहीं ??

भीगी-भीगी महकी-महकी 
पवन बावरी द्वारे आयी । 

संग खड़ी बदली को देखो 
इठलाये और
शोर मचाये
बूँद चली अपने पीहरवा
पात-पात पर
फिसली जाए

कभी मुँडेरी चढ़ जाती है
कभी धम्म से
कूदे आँगन
तप्त जून की दोपहरी में
ले आयी है
देखो सावन

सपने चढ़े अलगनी मन की
नयनन-नयनन वारे आयी

कहीं खिड़कियों के अंदर से
झाँक रहीं
दो नटखट आँखें
दूर - दूर तक राह निहारें
बिन मीते
पथराएँ पाँखें

बादल बैरी ! जा रे जा रे
जहां बसे पी
आज हमारे
सुध - बुध बिसराने क्यों आये
ले आ सजन
साथ में गा रे

यादों की ये कैसी बदली
जो आँसू बस धारे आयी ।

__गीता पंडित



1 comment:

मेरा अव्यक्त --राम किशोर उपाध्याय said...

गीता जी ..बहुत सुन्दर लिखा है आपने ...बधाई हो

रामकिशोर उपाध्याय