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इस बार की बारिश ने फिर से शब्दों को भिगो दिया ... आप भी भीगें ..... भीगे या नहीं ??
भीगी-भीगी महकी-महकी
पवन बावरी द्वारे आयी ।
संग खड़ी बदली को देखो
इठलाये और
शोर मचाये
बूँद चली अपने पीहरवा
पात-पात पर
फिसली जाए
कभी मुँडेरी चढ़ जाती है
कभी धम्म से
कूदे आँगन
तप्त जून की दोपहरी में
ले आयी है
देखो सावन
सपने चढ़े अलगनी मन की
नयनन-नयनन वारे आयी
कहीं खिड़कियों के अंदर से
झाँक रहीं
दो नटखट आँखें
दूर - दूर तक राह निहारें
बिन मीते
पथराएँ पाँखें
बादल बैरी ! जा रे जा रे
जहां बसे पी
आज हमारे
सुध - बुध बिसराने क्यों आये
ले आ सजन
साथ में गा रे
यादों की ये कैसी बदली
जो आँसू बस धारे आयी ।
__गीता पंडित
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इस बार की बारिश ने फिर से शब्दों को भिगो दिया ... आप भी भीगें ..... भीगे या नहीं ??
भीगी-भीगी महकी-महकी
पवन बावरी द्वारे आयी ।
संग खड़ी बदली को देखो
इठलाये और
शोर मचाये
बूँद चली अपने पीहरवा
पात-पात पर
फिसली जाए
कभी मुँडेरी चढ़ जाती है
कभी धम्म से
कूदे आँगन
तप्त जून की दोपहरी में
ले आयी है
देखो सावन
सपने चढ़े अलगनी मन की
नयनन-नयनन वारे आयी
कहीं खिड़कियों के अंदर से
झाँक रहीं
दो नटखट आँखें
दूर - दूर तक राह निहारें
बिन मीते
पथराएँ पाँखें
बादल बैरी ! जा रे जा रे
जहां बसे पी
आज हमारे
सुध - बुध बिसराने क्यों आये
ले आ सजन
साथ में गा रे
यादों की ये कैसी बदली
जो आँसू बस धारे आयी ।
__गीता पंडित
1 comment:
गीता जी ..बहुत सुन्दर लिखा है आपने ...बधाई हो
रामकिशोर उपाध्याय
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