पुस्तक बच्चे की तरह प्रिय होती है क्यूंकि यह भी प्रसव पीड़ा के बाद ही जन्म लेती है ...
इसलियें किसी का कोई भी कथन विशेष अर्थ के साथ सामने आता है |
___मन तुम हरी दूब रहना __ मेरे काव्य संग्रह पर तुलसी नीलकंठ जी ने समीक्षा की है ...
हृदय से आभारी हूँ तुलसी नीलकंठ जी की और संपादक जी की...
सत्यचक्र साप्ताहिक समाचार पत्र में य ह समीक्षा छपी है 16 से 22 ता...जनवरी 12 ..
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