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मेरे मन के प्रांगण में भी
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भाव सुमन भर लाओ,
मैं नित-नित गाती हूँ तुमको
आज मुझे माँ ! गाओ |
शंख नाद के पावन भावों
शंख नाद के पावन भावों
सी भर आये मेरी लेखनी,
सत्यं शिवं सुंदरं बनकर
जनमन कथा सुनाये लेखनी,
वीणा पाणी मात शारदे !
ऐसा वर ले आओ |
मैं नित-नित गाती हूँ तुमको
मैं नित-नित गाती हूँ तुमको
आज मुझे माँ ! गाओ |
लिखी सूर की तुमने पाती
लिखी सूर की तुमने पाती
बनीं कबीर की भाषा सादी,
बाँची तुलसी की रामायण
कालीदास को आयीं गाती ,
रुद्ध कण्ठ है अधर हैं कंपित
सुर सरिता लहराओ |
मैं नित-नित गाती हूँ तुमको
मैं नित-नित गाती हूँ तुमको
आज मुझे माँ ! गाओ |
तुमको गाती आयी युगों से
तुमको गाती आयी युगों से
कब गाने मैं पायी.
तुम ही मात्रा अक्षर बिंदु
कब वर्ण समझ मैं पायी,
बरसें नयना हर पल मेरे
गीतों में ढल आओ ।
मैं नित-नित गाती हूँ तुमको
मैं नित-नित गाती हूँ तुमको
आज मुझे माँ ! गाओ ||
गीता पंडित
गीता पंडित
(मन तुम हरी दूब रहना ) मेरे काव्य संग्रह से
3 comments:
"वीणा पाणी मात शारदे !ऐसा वर ले आओ |
मैं नित-नित गाती हूँ तुमकोआज मुझे माँ ! गाओ |"
बहुत सुंदर गीता जी।
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.
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