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चट्टानी
प्राचीरों पर भी
नव-चित्रों की
कथा सुनाये |
किरण-किरण
फैले उजियारा
मन ये भोर सुनहरी पाये |
समय थपेड़े
मारे चलता
कोई उसको कुछ समझाये,
श्रम की रोटी
खाने वाले
कैसे भूखे मरते आये,
लिखने को लिख
गये ग्रंथ हैं
आँसू अब भी आँखों में हैं,
कितने भी
जुलूस निकालो,
दर्द कमल की पाँखों में है,
मैं भी बोलूँ
तुम भी बोलो
पीड़ा मन की छँटकर आये |
यौवन अल्हड
भरी जवानी
अंग-अंग एक गीत बना है,
लेकिन ये क्या
फटे - चीथड़े
हर चौराहा रक्त सना है,
नेह जले है
रातों - रातों
जीवन की रचना भी खोई,
धुंधाती
अंखियों में देखो,
पनप रहा है सपना कोई,
चुपके से ये
रात रुपहली
वेष बदलकर दिनकर लाये |
चट्टानी
प्राचीरों पर भी
नव-चित्रों की कथा सुनाये |
गीता पंडित
22 comments:
किरण-किरण
फैले उजियारा
मन में भोर सुनहरी आये |
बेहतरीन।
सादर
तमाम कठिनाइयों के बावजूद आशा की किरण जगाता यह नवगीत सच में अनोखा है। ढेरों बधाई।
बहुत सुंदर ...पूरी पढ़ी तो अर्थ और भी स्पष्ट हुए ..कवि मन तो वही है जो हालत को समझे और उस पर अपनी लेखनी चलाएं ..कल्पनाएँ सुंदर होती है .शब्द भी उनके सुंदर बन पड़ते हैं ..मगर जो दिल को छूते हैं ..वे ऐसे ही होते हैं ..दूसरों की पीड़ा को समझ कर लिखे गए ..मैंने कविताएँ पढ्न काफी पहले छोड़ दिया था क्योंकि ..सभी समान नज़र आती थी ..पहली सी नहीं रही की की जिनको पढ़ कर ही कवि/कवियित्री की खुशबू आने लगती थी ....आपकी रचनाओ ने जिज्ञासा जगाई है ..:) बधाई ..!
बहुत सुंदर! भावपूर्ण!
मैं भी बोलूं
तुम भी बोलो
मन की पीड़ा छंटकर(छनकर) आए..
Saroj Singh (फेसबुक)
आजकल के हालात पर बड़ी सुन्दर रचना रची आपने गीता जी साधुवाद !!
Nirmal Paneri (फेसबुक)
वाह जी ....इंसानी आखों से कितने कोणों को दिखाई हुई आप की शाब्दिक अभिव्यक्ति मर्म को छुती इंसानी जीवन में जो फीके रंगों में शायद कही नवीन उर्जा का सन्देश भी !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
Prabhat Pandey (फेसबुक)
आँसू अब भी आँखों में हैं ..... कितने भी जुलूस निकालो ..... एक सच यह, और दूसरा सच यह भी कि अंखियों में पनपता सपना ही कुछ यों कि नव-चित्रों की कथा ..... नाजुक हिलकोरों से भरी अभिव्यक्ति ..... बधाई
Manoj Chhabra (फेसबुक)
'यौवन अल्हड
भरी जवानी
अंग-अंग एक गीत बना है,
लेकिन ये क्या
फटे - चीथड़े
...हर चौराहा रक्त - सना है,
Arun Kapoor (फेसबुक)
'' vesh badal kar dinkar laye'' wah shayad yahi kalapna rahi hogi jab likha gaya hoga ''woh subah kabhi to aayegi'' bahut khub gita ji
Tushar Devendrachaudhry (फेसबुक)
धुन्धाती
अंखियों में देखो,
पनप रहा है सपना कोई
Ashok Aggarwal (फेसबुक)
मंजिल तक पहुँचाने वाला कोई तो अभियान चाहिए
अंतस का तम हरने वाला एक नया दिनमान चाहिए ...
Arvind Upadhyay (फेसबुक)
kab mila hai rajpath par ya pragati maidan mein........jindgi ka satya galiyo mein bhatak kar dekhiye.............
Purnima Varman (फेसबुक)
खूब अच्छी लिख रही हो गीता। कुमार रवीन्द्र जी भी तारीफ किये बिना नहीं रहेंगे।
सभी मित्रों की हृदय से आभारी हूँ...
ब्लॉग तक कुछ मित्र नहीं आ पाते हैं तो मैंने इसी पोस्ट के कमेंट्स फेसबुक से लेकर यहाँ डाल दिए हैं साभार...उनकी पदचाप हमेशा सुन पाउंगी..
सनेह
गीता पंडित
आभार स्मिता जी
कविताओं का पाठक कम से कम एक तो और बढ़ा ...
आभारी हूँ आपके स्नेह के लियें..
पूर्णिमा दी,
विशेष रूप से आभारी हूँ आपकी..
सादर
Sayeed Ayub (फेसबुक)
बहुत सुन्दर है गीता जी. सचमुच. मुझे आपकी गीतों में भाव और कला का जो संगम दिखाई देता है, वह इतना बैलेंस है कि कहीं से भी एक भी
लहर इधर-उधर नहीं. न बाढ़, न सूखा. बस बहता समतल नीर.....इस गीत (गीत के बंद) को पढ़ने के बाद, मैं कई मनोभावो से गुज़रा. कभी समय निकाल कर मैं आपकी गीतों के बारे में अपनी राय लिखूँगा. वैसे मैं कोई आलोचक नहीं हूँ, मेरी राय तो केवल एक पाठक की राय होगी. एक बात और, मैं गीतों का रसिया हूँ, लेकिन मुझे गीतों की ज़्यादा समझ नहीं है
Thanks, to post this type of poem
Bahut sundar laga. Thanks
बहुत ही सुद्नर कविता गीता जी . शब्दों का संयोजन बहुत ही अच्छी तरह हुआ है .. जीवन के प्रति आशा दर्शाती हुई इस कविता के लिये बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
गीता जी
आपको याद होंगा , मैंने आपसे आपकी किताबे मंगवाई थी फेसबूक पर कहा था . मैं अपना पता दे रहा हूँ . कृपया जरुर भिजवाए .
V I J A Y K U M A R S A P P A T T I
FLAT NO.402, FIFTH FLOOR,
PRAMILA RESIDENCY; HOUSE NO. 36-110/402,
DEFENCE COLONY, SAINIKPURI POST,
SECUNDERABAD- 500 094 [A.P.].
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