Saturday, August 27, 2011

नये सपन की बात ... गीता पंडित


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कुहराई है
टहनी - टहनी,
पात - पात
कुहरा आया
फिर भी
नव - पत्तों की बातें
देखो डाली करती है,
शब्द - शब्द में
बहकी
फिरती
भाव - भाव में
टंक आती,
नये
सपन को
देखो अब भी
आँख
मेरी तकती है |


.गीता पंडित.

लोकतंत्र की विजय गर्व है मुझे मैं
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की नागरिक हूँ
और वो देश मेरा अपना है ........... जय हिंद ...

2 comments:

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत सुन्दर गीता दी...
सादर बधाई...

Shashi Padha said...

सुन्दर एवं सामयिक गीता जी, बधाई

शशि पाधा