Friday, July 1, 2011

जाने क्यूँ.... एक कविता ...गीता पंडित .

...
...


तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,
जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,

कितना खाली - खाली मन है,
चुप्पी है चहूँ और सजी,
मीत ! तुम्हीं से मन की पायल,
मेरी थी दिन - रैन बजी.

अभी प्रतीक्षित - श्वासें - मेरी,
हैं ड्योढ़ी पर नयन लगे.
आकर देखो मन के द्वारे,
प्रेम के पाखी सभी जगे | |

..गीता पंडित

25 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,


नवीन बिम्ब को लेकर लिखी सुन्दर रचना ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 07 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

साप्ताहिक काव्य मंच-- 53 ..चर्चा मंच 566

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत ख़ूबसूरत गीत है गीता दी....
सादर....

गीता पंडित said...

संगीता जी !
आभारी हूँ आपकी..


शुभ कामनाएं
गीता पंडित

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर रचना...बधाई

shikha varshney said...

बहुत समय बाद आपको पढ़ने का सौभाग्य मिला.
बहुत सुन्दर कविता है.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अच्छी रचना है। बहुत सुंदर,
शुभकामनाएं

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर रचना...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

naye bimbon se saji sundar rachna.

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर भावमयी रचना..

udaya veer singh said...

प्यारा रस-स्निग्ध काव्य ,सराहनीय है जी बधाई /

अनामिका की सदायें ...... said...

man ke komal bhaavo ko sahezti sunder rachna.

mridula pradhan said...

bahut pasand aayee.......

रश्मि प्रभा... said...

तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,

जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
chir parichit abhivyakti...bahut achhi laga phir se milker

आनन्द विश्वास said...

कविता, जो आदमी के ह्रदय और मस्तिष्क दोनों को भिगो सके. आपकी कविता ने इन दौनों कामों को बड़ी सहजता के साथ किया है.
' जानें क्यूँ ' एक अच्छी रचना है, साधुवाद.
आनन्द विश्वास
अहमदाबाद.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

गीता पंडित said...

आप सभी मित्रों के
स्नेह के लियें
हृदय से आभारी हूँ...


शुभ-कामनाएं
गीता पंडित

गीता पंडित said...

आभारी हूँ आपकी ...

प्रणाम विशवास जी..
नमन मेरा स्वीकार हो..


शुभ कामनाएँ
गीता पंडित..

शिवनाथ कुमार said...

बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति ,,,, काफी अच्छी रचना , बधाई !!

Anonymous said...

हार्दिक बधाई

Rachana said...

तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,

जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
bahut sunder
rachana

Rachana said...

तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,

जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,

सुंदर भावाभिव्यक्ति
आभार

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

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आदरणीया गीता जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

आज कई दिन बाद आया तो आपकी कई न पढ़ी हुई रचनाएं एक साथ पढ़ कर श्रेष्ठ सृजन की प्यास को तृप्त किया …

जाने क्यूं रचना मनभावन है -
अभी प्रतीक्षित - श्वासें - मेरी,
हैं ड्योढ़ी पर नयन लगे.

आकर देखो मन के द्वारे,
प्रेम के पाखी सभी जगे


आपकी लेखनी को नमन है ।

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

nutan vyas said...

Bahut sundar Abhiwyakti Gita ji...Aabhaar !