Thursday, June 16, 2011

प्रेम ....


..
...


ज़िंदगी
क्या है कभी
किसको
समझ आया यहाँ,


एक तुम्ही
थे बस तुम्ही थे
पर ना जाने थे कहाँ,


बिन तुम्हारे
दीप सा तन
बुझ के माटी हो गया,


फिर भी
दीपक सा चहकता
मन रहा केवल वहाँ ||



गीता पंडित

5 comments:

गीता पंडित said...

प्रेम है केवल समर्पण, प्रेम मन का गान है,
प्रेम के बिन मीत मेरे ! मन रहे शमशान है,
लिख रही हूँ पाती तुमको भाव में भरकर प्रिये !
एक तुम्ही से ही तो मीते मेरे मन का मान है |


.. गीता पं..

गीता पंडित said...

जीवन
केवल
एक पहेली,
उलझे - सुलझे
सुलझे - उलझे,

लेकिन
याद र
हे ओ मनवा !
मन की लट ये
कभी ना उलझे | .. गीता पंडित..

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत सुन्दर कविताये...

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना!
हार्दिक शुभकामनायें !

anita agarwal said...

mun keval raha wahan....
wah... maza aa gaya..
jane kahan se ghoomte tehelte aapke blog per a pahuchi... purani yadein taza ho gayi 'jee'... phir se mil ke bahut achha laga...aap bhi kabhi yun hitehalte huae mujh tak aa jana....achha lagega...