प्रेम है केवल समर्पण, प्रेम मन का गान है, प्रेम के बिन मीत मेरे ! मन रहे शमशान है, लिख रही हूँ पाती तुमको भाव में भरकर प्रिये ! एक तुम्ही से ही तो मीते मेरे मन का मान है |
mun keval raha wahan.... wah... maza aa gaya.. jane kahan se ghoomte tehelte aapke blog per a pahuchi... purani yadein taza ho gayi 'jee'... phir se mil ke bahut achha laga...aap bhi kabhi yun hitehalte huae mujh tak aa jana....achha lagega...
5 comments:
प्रेम है केवल समर्पण, प्रेम मन का गान है,
प्रेम के बिन मीत मेरे ! मन रहे शमशान है,
लिख रही हूँ पाती तुमको भाव में भरकर प्रिये !
एक तुम्ही से ही तो मीते मेरे मन का मान है |
.. गीता पं..
जीवन
केवल
एक पहेली,
उलझे - सुलझे
सुलझे - उलझे,
लेकिन
याद र
हे ओ मनवा !
मन की लट ये
कभी ना उलझे | .. गीता पंडित..
बहुत सुन्दर कविताये...
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना!
हार्दिक शुभकामनायें !
mun keval raha wahan....
wah... maza aa gaya..
jane kahan se ghoomte tehelte aapke blog per a pahuchi... purani yadein taza ho gayi 'jee'... phir se mil ke bahut achha laga...aap bhi kabhi yun hitehalte huae mujh tak aa jana....achha lagega...
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