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तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,
जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
कितना खाली - खाली मन है,
चुप्पी है चहूँ और सजी,
मीत ! तुम्हीं से मन की पायल,
मेरी थी दिन - रैन बजी.
अभी प्रतीक्षित - श्वासें - मेरी,
हैं ड्योढ़ी पर नयन लगे.
आकर देखो मन के द्वारे,
प्रेम के पाखी सभी जगे | |
..गीता पंडित
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तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,
जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
कितना खाली - खाली मन है,
चुप्पी है चहूँ और सजी,
मीत ! तुम्हीं से मन की पायल,
मेरी थी दिन - रैन बजी.
अभी प्रतीक्षित - श्वासें - मेरी,
हैं ड्योढ़ी पर नयन लगे.
आकर देखो मन के द्वारे,
प्रेम के पाखी सभी जगे | |
..गीता पंडित
25 comments:
जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
नवीन बिम्ब को लेकर लिखी सुन्दर रचना ...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 07 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 53 ..चर्चा मंच 566
बहुत ख़ूबसूरत गीत है गीता दी....
सादर....
संगीता जी !
आभारी हूँ आपकी..
शुभ कामनाएं
गीता पंडित
बहुत सुन्दर रचना...बधाई
बहुत समय बाद आपको पढ़ने का सौभाग्य मिला.
बहुत सुन्दर कविता है.
अच्छी रचना है। बहुत सुंदर,
शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर रचना...
naye bimbon se saji sundar rachna.
बहुत सुन्दर भावमयी रचना..
प्यारा रस-स्निग्ध काव्य ,सराहनीय है जी बधाई /
man ke komal bhaavo ko sahezti sunder rachna.
bahut pasand aayee.......
तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,
जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
chir parichit abhivyakti...bahut achhi laga phir se milker
कविता, जो आदमी के ह्रदय और मस्तिष्क दोनों को भिगो सके. आपकी कविता ने इन दौनों कामों को बड़ी सहजता के साथ किया है.
' जानें क्यूँ ' एक अच्छी रचना है, साधुवाद.
आनन्द विश्वास
अहमदाबाद.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
आप सभी मित्रों के
स्नेह के लियें
हृदय से आभारी हूँ...
शुभ-कामनाएं
गीता पंडित
आभारी हूँ आपकी ...
प्रणाम विशवास जी..
नमन मेरा स्वीकार हो..
शुभ कामनाएँ
गीता पंडित..
बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति ,,,, काफी अच्छी रचना , बधाई !!
हार्दिक बधाई
तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,
जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
bahut sunder
rachana
तुम से ही चहकी मन चिड़िया
कलरव था मन की डाली,
जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
जाने क्यूँ - कर काट ले गया,
बरगद को पल का माली,
सुंदर भावाभिव्यक्ति
आभार
.
आदरणीया गीता जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
आज कई दिन बाद आया तो आपकी कई न पढ़ी हुई रचनाएं एक साथ पढ़ कर श्रेष्ठ सृजन की प्यास को तृप्त किया …
जाने क्यूं रचना मनभावन है -
अभी प्रतीक्षित - श्वासें - मेरी,
हैं ड्योढ़ी पर नयन लगे.
आकर देखो मन के द्वारे,
प्रेम के पाखी सभी जगे
आपकी लेखनी को नमन है ।
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
Bahut sundar Abhiwyakti Gita ji...Aabhaar !
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