Monday, March 1, 2010

ऐसी आये अब के होली...

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ऐसी आये अब के होली ॥


मन में भरे रंग की झोली,
नेह की भरभर आये टोली,
रंग प्रेम का हर एक बरसे,
बँध जाये फिर मन पर मौली ।


प्रेम भरी हो सब की बोली ।
ऐसी आये अब के होली ॥


तुम ने कैसे रंग लगाये,
मन पलाश से होकर आये,
ढूँढ रही फिर वही अल्पना,
जो अंतर में बनकर आये ।


चूनर पर हो वही रंगोली ।
ऐसी आये अब के होली ॥


नयनों में फिर झूले सपने,
बिन साजन के कैसे अपने,
फिर से आये पवन बसंती,
लगे श्वास को मन से जपने।


उपवन हो हर मन की खोली ।
ऐसी आये अब के होली ॥


जा बसंत !प्रिय को ले आ रे,
मधुमास मेरे अंग खिला रे,
चूनर धानी रंग के लाऊँ,
पैंजनिया को बोल पिला र ।


आ जाये फागुन की डोली ।
ऐसी आये अब के होली ॥


गीता पंडित (शमा)

4 comments:

Anonymous said...

होली के अवसर पर सच्चे और सार्थक सन्देश देती बहुत सुंदर रचना - आपको भी होली की विलंबित (belated) बधाई

Anonymous said...

आपकी नई पोस्ट के इन्तजार में

BRIJMOHAN BISSA said...

मेरे ब्लाग पर आपका मार्गदर्शन निःसंदेह मुझे आगे भी लिखने की ताकत देता रहेगा ,,,, आपने समय निकाल कर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी प्रेषित की ॰॰॰॰॰ आपका बहुत बहुत आभारी हूं ॰॰॰॰॰
होली पर आपकी रचना बहुत ही शानदार है ॰॰॰॰॰ मार्गदर्शन बनाये रखियेगा ॰॰॰॰॰ शुभकामनायें

गीता पंडित said...

आभार आपका..


जी राकेश जी.....