कुछ मन की -----
जीवन की सुंदर नगरी से
सपने कुछ चुन लेना ,
कुछ मन की कह लेना मेरे
मन की कुछ सुन लेना |
एक झुनझुना मनुज है केवल
स्वयं नहीं बज पाये,
अंतर की घाटी के उपवन
मुखरित हो कब आये,
अथक चले चलना है मीते !
मन सुहास बुन लेना |
सपने कुछ चुन लेना |
हिचकोले लेकर चलती है
पल पल की नैय्या,
फिर भी जाने कौन थामता
आकर के बैंय्या,
नेह आस्था के बंधन फिर
अंतर में गुन लेना |
सपने कुछ चुन लेना ||
गीता पंडित
1 comment:
बहुत सुंदर गीत
विशेष
"एक झुनझुना मनुज है केवल
स्वयं नहीं बज पाये,
अंतर की घाटी के उपवन
मुखरित हो कब आये,
अथक चले चलना है मीते !
मन सुहास बुन लेना"
Post a Comment