आ चलें बन
दीप दीवाली मनायेंगे ।
मन में ना
आये व्यथा,
लिखें उजाले
की कथा,
एक दिन तुम
देखना मन मुस्करायेंगे |
नयन जिनमें
तम भरा हो,
पग वो जिसमे
कोहरा हो,
आस की लाकर
किरण उनको सजायेंगे |
आ सहेजें
सबको आओ
सुर से सुर
अपना मिलाओ,
गुनगुना कर
एकता के गीत गायेंगे ।
नयन से आ
द्वेष झरता
नीर मन का
आ सहमता,
पीर की होली जलाकर मन रंगायेंगे ।
एक दिन तुम देखना
मन मुस्करायेंगे ||
दीप दीवाली मनायेंगे ।
मन में ना
आये व्यथा,
लिखें उजाले
की कथा,
एक दिन तुम
देखना मन मुस्करायेंगे |
नयन जिनमें
तम भरा हो,
पग वो जिसमे
कोहरा हो,
आस की लाकर
किरण उनको सजायेंगे |
आ सहेजें
सबको आओ
सुर से सुर
अपना मिलाओ,
गुनगुना कर
एकता के गीत गायेंगे ।
नयन से आ
द्वेष झरता
नीर मन का
आ सहमता,
पीर की होली जलाकर मन रंगायेंगे ।
एक दिन तुम देखना
मन मुस्करायेंगे ||
32 comments:
नयन से आ
द्वेष झरता
नीर मन का
आ सहमता,
पीर की होली जलाकर मन रंगायेंगे ।
एक दिन तुम देखना
मन मुस्करायेंगे ||
सादर आभार
खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
पुनश्च: कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया.
आदरणीया गीता पंडित जी 'शमा'
अभिवादन !
आपके यहां पहली बार आया हूं , और सुखद अनुभूतियों से भर गया हूं …
इतनी अच्छी छंद की रचनाकार हैं आप !
आपके ब्लॉग की बहुत सारी रचनाएं पढ़ीं , सब एक से बढ़ कर एक हैं ।
प्रस्तुत नवगीत भी बहुत सुंदर भाव और श्रेष्ठ शिल्प का उदाहरण है …
मन में ना
आये व्यथा,
लिखें उजाले
की कथा,
एक दिन तुम देखना मन मुस्करायेंगे |
वाह वाऽऽह !
पूरा गीत मेरे छंदकार के मन की तृप्ति में योगदान करता प्रतीत हो रहा है
नयन से आ
द्वेष झरता
नीर मन का
आ सहमता,
पीर की होली जलाकर मन रंगायेंगे ।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
geeta pndit shma ji sb se pahle to aap ka hardik aabhar aap ne meri nv geetika prsneh poorn tipnni dee
isi ke dwara aap ka sundr geet pdhne ko mila mn ko chho gya asshavad ko protsahit krti rchna apne aap me atyadhik sfl rhi
meri hardik bdhai swikar kren
dr.vedvyathi@gmail.com
एक दिन तुम देखना
मन मुस्करायेंगे ||
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां, भावमय करती प्रस्तुति ।
अच्छी रचना....
वाह गीता जी अच्छी कविता लिख रही हैं ।
यह वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें ।
गीता जी,
इस गीत में अवगुम्फित ‘आह्वान’ का स्वर सर्वथा प्रशंसनीय है।
यह सुखद है कि आप अकेले ही दीप नहीं जलाना चाहतीं, प्रत्युत् दूसरों को भी अपने प्रकाशोत्सव में शामिल करना चाहती हैं...ताकि दिग्-दिगंत में उजाला हो सके...आपकी मूल चिंतन-वृत्ति को सलाम!
और हाँ...यदि आप मेरी इस विनम्र राय को स्वीकार कर सकें, तो अच्छा होगा-
मन में ना
आये व्यथा,
लिखें उजाले
की कथा,
इन पंक्तियों में प्रयुक्त ‘ना’ का प्रयोग व्याकरण-सम्मत नहीं है। इसकी जगह पर ‘न’ का प्रयोग करना चाहिए...आपकी राय जो भी हो, अवगत कराएँ!
:)
बहुत खूबसूरत कविता
ये खास पसंद आई
गुनगुना कर
एकता के गीत गायेंगे ।
नयन से आ
द्वेष झरता
नीर मन का
आ सहमता,
पीर की होली जलाकर मन रंगायेंगे ।
एक दिन तुम देखना
मन मुस्करायेंगे |
:)
गीता जी,
नमस्कारम्!
अब नयी रचना पोस्ट कर दीजिए...समय निकालकर!
मैं तो आपको पढने आया था...मगर खाली हाथ जा रहा हूँ।
आभारी हूँ आप सभी की...
आपकी टिप्पणियाँ प्रोत्सासित करती हैं..लेखनी को...
साभार
गीता...
जितेन्द्र जौहर जी...मुझे खेद है कि
आपको खाली हाथों लौटना पड़ा...
शीघ्र ही नयी कविता पोस्ट करूंगी..
साभार
गीता.
geeta ji nmskaraap ka meri rchna ko sneh v pyar mila kin shbdon me aabhrvykt kroon khin rchna ko mila pyar chhota n pd jaye
kripya yh sb bnaye rhiye
hridy kee gahraiyonse aabhar vykt kr rha hoon
kripya swikar kr len
एक बेहतरीन रचना ।
काबिले तारीफ़ शव्द संयोजन ।
बेहतरीन अनूठी कल्पना भावाव्यक्ति ।
सुन्दर भावाव्यक्ति । साधुवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
आप अपने ब्लाग की सेटिंग मे(कमेंट ) शब्द पुष्टिकरण ।
word veryfication पर नो no पर
टिक लगाकर सेटिंग को सेव कर दें । टिप्प्णी
देने में झन्झट होता है । अगर न समझ पायें
तो rajeevkumar230969@yahoo.com
पर मेल कर देना ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को भी सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
जितेन्द्र जी ! आप ठीक कह रहे हैं...
आभार....
आभार आप सभी मित्रों का..
शुभ-कामनाएँ...
bahut sundar rachana hai aapkee. aur hai usmain geyata bhee. badhaee sweekaren.
छंद उसने दे दिए मुझको कभी जब
गा उन्हें शब्दों में मन से मुस्कराई |
आभार आपका...चौहान जी...
khubsurat bhaw..........:)
khubsurat bhaw..........:)
khubsurat bhaw..........:)
khubsurat bhaw..........:)
khubsurat bhaw..........:)
आशावादी दृष्टिकोण से लिखी यह सुन्दर रचना पढवाने
Sundar bhav.
---------
पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
उम्दा लिखा है..
पीर की होली जलाकर मन रंगायेंगे ।
एक दिन तुम देखना
मन मुस्करायेंगे ||
Your optimistic approach in the above lines deserves appreciation.You are having a wonderful writer in you.
गीता जी होली की रंगभरी शुभकामनाएं |
Bhagwaan kare aap hamesha ROSHANI bankar maarg ka andhera door karati rahein.
- C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi"
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