Thursday, July 5, 2007

बहार की पहली फुहार.....


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नव-किसलय जब मुसका कर,
तरूवर की काया पर डोलें..,
शिशु का कोमल स्पर्श परस,
नभ को तरूवर भी छू लें..,

कली-फूल सिर हिला-हिला..,
हँस-हँसकर जब पास बुलाएं.,
उमड-घुमड-कर बादल भी..,
धरती से प्रेम-आलाप करे..,

कोयल डाली पर अम्बुवा की ,
जब मीठे सुर में गुंजार करे..
हुलस-हुलस कर मनवा भी ,
मन का सोलह-श्रंगार करे..,

तब बहार की पहली फुहार..,
ले आये तुम्हारी सुधियों को ,
रजनी-गंधा सी महक-महक,
सुरभित करती तन-मन को,

तब चुपके से प्रीत कुंवारी..,
मोती बन पलकों पर सजती,
टीस हृदय में उठती गहरी..,
अन्तर्मन में जाकर रिसती..,

गीता पण्डित

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