Sunday, June 3, 2007

कोई मीत नहीं..,

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कोई मीत नहीं..,
कोई गीत नहीं..,

एक उम्र रो गई.,
चुप-चाप सो गई,

कांधा कोई नहीं..,
कोई कफ़न नहीं.,

दो गज ज़मीं नहीं,
आँसू की लङी नहीं,

जन्मों से मुक्त हुई,
"ओम" में लुप्त हुई,

सब कुछ है वही,
बस मैं नहीं रही,

गीता (शमा)

3 comments:

Gaurav Shukla said...

जन्मों से मुक्त हुई,
"ओम" में लुप्त हुई,"

गागर में सागर भर लाई हैं आप
अनुपम रचना के लिये बधाई

सस्नेह
गौरव शुक्ल

praveen pandit said...

'PARE' jo kuchh hai ,
shaayad vahin ki baat hai jo
Gita ji kar rahi hain.

sahaj nirvaan ki parikalpnaa bhi sambhavtah yahi hai,padhkar me samajhne me kuchh der shaayad ho
bhi jaaye,parantu anubhooti kee jaaye tho ham jaanenge

ki sahajtam-saraltam shabdon me
uchchtam anoobhooti aise hi ki jaa sakti hai ....

मनोज भारती said...

जन्मों से मुक्त हुई,
"ओम" में लुप्त हुई,

सब कुछ है वही,
बस मैं नहीं रही,

यही जीवन का सौंदर्य है
कि जब रिक्त होता है यह मैं से
तभी आपूरित होता सब कुछ से