Thursday, March 31, 2016

हाँ दिन यूँ ही ढल जाता है....गीता पंडित

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यूँ तो कुछ ना रुक पाता है,
हाँ दिन यूँ ही ढल जाता है।

 
प्रीत बावरी ! मन के पन्नों
पर ना जाने क्या लिख जाती,
मीरा बन मन की पनिहारिन
प्रीत कूप जल भरने जाती,


प्रीत बिना मन जल जाता है,
हाँ दिन यूँ ही ढल जाता है । 

भोर न गाये राग सुबह का
दोपहरी तन धूप बनाये,
मन की माटी का हर दीपक
दिपदिप करके बुझता जाये,

बुझता दीपक खल जाता है,
हाँ दिन यूँ ही ढल जाता है। 

गीता पंडित 
1 / 4 / 16 


(2007 का लिखा हुआ )

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