Monday, September 21, 2015

मृत्यु आजकल मुझसे बतियाती है ..... गीता पंडित

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मृत्यु आजकल मुझसे बतियाती है
हंसती है जोर से
अट्टहास करती है


मैं चौंकती नहीं पहले की तरह ...
उपहास भी नहीं करती
मुँह भी नहीं मोड़ती


हाँ उदास आँखों से पलटकर देखती हूँ कहीं
जहां जीवन ने बिखर दी थीं
अपनी कुछ कतरन 

उन्हें बीनती हूँ और
एक दृष्टि अनायास
डालकर अपने आप पर
उससे कहती हूँ
अभिनंदन तुम्हारा
 
लेकिन जब भी
अपने कांधे से मुझे लगाओ
धीमे से संभालना
इस जर्जर
प्रेम पगी कँपकपाती देह को 

क्यूंकि सदियों से
अपना ही बोझ ढोते-ढोते
यह हो गयी है धनुषाकार
चाहकर भी अब इसे
सीधी करना मुमकिन नहीं 

फिर भी खड़ी है सतर्क अडिग
अपने ही प्रेम की प्रियसी
प्रेम ने इसे पुचकारा है
बड़े प्रेम से 


कम से कम

तुम तो स्वागत करना 

गुनगुनाना 

इसके स्वाभिमान को
जिसको बचाते-बचाते
माटी फिर माटी हो रही है
 
-गीता पंडित
21/9/15

1 comment:

Kailash Sharma said...

दिल को छूते गहन अहसास..बहुत सुन्दर और भावमयी रचना..