Wednesday, November 18, 2015

एक मुक्तक .... गीता पंडित

.....
........

अलसाई अंखियों से सूरज
ऊंघ-ऊंघकर जाग रहा है..
 
वृक्षों पर चिड़ियों का कलरव
सुबह का बस राग रहा है
 
लेकिन तुम तो जागो साथी
स्वप्न करो अब उठकर पूरे.
 
जो सोया है भाल उसी के
निष्फलता का दाग रहा है ..
 
-गीता पंडित
19/11/15

No comments: