Tuesday, December 18, 2012

बचना मेरी राह में आने से...... गीता पंडित

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मैंने कभी नहीं ललकारा 
तुम्हारे पुरुषत्व को

तुमने ललकारा मेरे स्त्रीत्व को
एक बार नहीं, दो बार नहीं 
जाने कितनी बार 
बरसों सदियों 


मेरा प्रेम समर्पित था 
तुम्हारे लियें
तुम्हारी इच्छाओं के लियें
तुम्हारे सुख-सौंदर्य-वैभव के लियें

कहाँ रास आया तुम्हें
देवी बनाकर मुझे 
बना दिया बंधक

भूल गये मेरा मन, 
मेरी चेतनता, मेरा प्रेम , मेरा समर्पण
यहाँ तक कि मेरा अस्तित्व
बन गयी अहिल्या
सीता, मांडवी उर्मिला रुक्मणी सी 
राह देखती रही तुम्हारी

हाय रे भाग्य ! रह गयी केबल देह मात्र
एक जीवित लाश


मैं भी पगली ! मौन तुम्हारे प्रेम में
नहीं पहचान पायी तुम्हारी छलना को
आज भी नहीं पहचानती
अगर तुमने नहीं कुचला होता 
मेरी आत्मा को
मेरे अंतस को


बस अब और नहीं
मैं लडूंगी स्वयं से, 
तुमसे,
इस समूचे समाज से, 
संसार से
  

हाँ याद रहे
बचना मेरी राह में आने से |



गीता पंडित 
19 दिसंबर 2012 


( 12 दिसंबर 1012 को दिल्ली में घटी बलात्कार की अमानवीय घटना पर )

1 comment:

Satish Saxena said...

बचना, मेरी राह में आने जाने से !
कहीं न शरमा जाओ,गाली खाने से !