Thursday, September 8, 2011

एक गज़ल ........ गीता पंडित



...
....



सुबह से साँझ तक खपकर हम इतना कमाते हैं
मिले दो जून की रोटी, इक सपना सजाते हैं |


उमर की शाख पे देखो , ये बरगद पुराना है
कहें किससे बिना छत के हम सोने न पाते हैं |


घने जंगल उगे कीकर, लहु रिसता है श्वासों से
जहाँ भी चाह मिलती घर वो अपना बनाते हैं |



कहाँ है रुक्मणी बोलो घर जिसने सजाया है
समर्पण की विधा भूले , राधा कृष्ण गाते हैं |


मुखौटे ओढ़कर जीना 'गीता' कब हमें आया
जिसे भी हम बुलाते हैं,  दिल से ही बुलाते हैं |


 .... गीता पंडित..

15 comments:

Ashish Pandey "Raj" said...

समर्पण की विधा भूले वो राधाकृष्ण गाते हैं ...
व्यंग्य भरी इन पंक्तियों हेतु आभार ....
वाह

गीता पंडित said...

Akbar Rizvi (फेसबुक पर कमेंट)

कहाँ है रुक्मणी बोलो सजाया जिसने घर आँगन
समर्पण की विधा भूले ,वो राधा कृष्ण गाते हैं | .............वाक़ई बहुत ही शानदार और सवालों के आकार में हकीकत की तरफ धकियाते भाव.... आइना दिखाते शब्द।

गीता पंडित said...

Prabhat Pandey (फेसबुक पर)

जहाँ भी चाह मिलती घर वहीं अपना बनाते हैं ..... आज की तारीख़ जरूरी कि यह समझा जाए .....

गीता पंडित said...

Girish Tiwari (फेसबुक)

Geeta,
Really Very excillent and Impressive. Aap ki lekhni me chhupe shabdon aur bhawnao ke liye hriday se sammaan.

गीता पंडित said...

Gita Pandit (फेसबुक पर)


फेसबुक पर परसों घर की कामना, और एक कविता पर दो और कवितायें ऊपर से बोम्ब विस्फोट सभी ने उद्वेलित किया और जो कुछ लिखा गया....आपके सामने है....

गीता पंडित said...

Girish Tiwari (फेसबुक पर)

gita, yehi bhawnaye ek insaan ko samvedansheel samaj ka ek prabudh or jagruk insaan banati hain.
Mai aap ka aapki bhawnaon ke liye samman deta hoon.
Aur yehi keh sakta hoon ki,
"hum aapke saath hain"

गीता पंडित said...

Kavi Arjun Alhad (फेसबुक)

GEETA JI..
भावपूर्ण गज़ल के लिए साधुवाद

गीता पंडित said...

चेतन रामकिशन (फेसबुक)

‎"कहाँ है रुक्मणी बोलो सजाया जिसने घर आँगन
समर्पण की विधा भूले ,वो राधा कृष्ण गाते हैं |"

*******************क्या शानदार सच्चाई आपने व्यक्त किया है! दीदी जी,
आपने सही और सटीक कहा!

दशा यही है, सोच उनकी यही है! आपकी अनमोल साहित्य को नमन, दीदी जी!"

गीता पंडित said...

Ashok Aggarwal (फेसबुक)

समर्पण की विधा भूले ,वो राधा कृष्ण गाते हैं |
कहाँ है रुक्मणी बोलो सजाया जिसने घर आँगन
Didi apka ye sher jyadatar logo ko hazam nahi hoga , lekin satya yahi hai .Aur apni rachna me is tarah ki koi baat kehna hi ek kalamkaar ko mahaan banata hai .Isiliye mai apke sanidhya me aakar swayam ko gauravanvit mehsoos karta hu.

गीता पंडित said...

Sharda Jha (फेसबुक)

gita di..ths piece of writing is really nice..like always !! Radha aur rukmini ke antar ko sabne pasand kiya....dono ke samarpan ki to koi tulna hi nahi hai..rukmini ko uska prem mila..radha ne prem kiya..!!

गीता पंडित said...

Sharda Jha (फेसबुक)

but i liked the first couplet most..
Subah se sham tak khap kar hum itna kamate hai..mile do june ki roti..magar sapna sajate hai...wah!! Dil ko chho gayi ye baat !! Kitni karuna aur asha hai in panktiyon me..congratulations !!.

गीता पंडित said...

Praveen Pandit (फेसबुक)

शुक्रिया एक ख़ूबसूरत गज़ल के लिए -- और हाँ , रुक्मणी को इस अंदाज़ मे मानस पटल पर नए रंग से चित्रित करने का शुक्रिया अलग से |

गीता पंडित said...

Gita Pandit (फेसबुक)

‎Sharda Jha , Ashok Aggarwal, Praveen Pandit .... आज मानवीय धरातल पर , सोचकर देखें, हमारी सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक संरचना पर सोचें .... और तब ये शेर देखें...................................................कहाँ है रुक्मणी बोलो सजाया जिसने घर आँगन
समर्पण की विधा भूले ,वो राधा कृष्ण गाते हैं |

गीता पंडित said...

Maya Mrig (फेसबुक)

चलो वहीं पर घर अपना सजाते है---

गीता पंडित said...

Jagdish Mishra (फेसबुक)

So thoughtful..