भाव तुम्हारे तुम्हें समर्पित, अंतर्मन के धारे हैं, गीतों में भरकर जो आये मन के वेद उचारे हैं||
Thursday, June 16, 2011
प्रेम ....
..
...
ज़िंदगी
क्या है कभी
किसको
समझ आया यहाँ,
एक तुम्ही
थे बस तुम्ही थे
पर ना जाने थे कहाँ,
बिन तुम्हारे
दीप सा तन
बुझ के माटी हो गया,
फिर भी
दीपक सा चहकता
मन रहा केवल वहाँ ||
गीता पंडित
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