बेबस द्रोणाचार्य-
ओ समय! मुखौटे उतारते हुए
तुम मुस्कुराते हो
हम रोते हैं
तुम अट्टहास करते हो
हम चीखते हैं
संवेदनाओं के बाज़ार में
बिकाऊ हो गया है आदमी
हैरान आँखें
करती हैं मूक रुदन
तुम होंठों पर चुप्पी
और आँखों पर पट्टी बाँधे
गांधारी बन देखते हो
जबकि होना था तुम्हें गांडीवधारी अर्जुन
जिसे दिखाई देनी थी
बींधने के लिये
केवल आँख की पुतली
दर्द के ग्रंथ लिखती हुई सड़कें
पीड़ा में डूबे हुए गाँव
प्रश्न बनकर खड़े हैं तुम्हारे सामने
मौन हो तुम
लेकिन नहीं रहेगा मौन इतिहास
हिसाब देना होगा
अमानवीय होते हुए हरेक पल का।
तुम्हारा बेबस द्रोणाचार्य बनना
प्रलयंकारी है
यह समझ लेना
#गीता पंडित
14 जून 2920
#कोरोना
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