Thursday, March 21, 2013

विश्व कविता दिवस पर ...गीता पंडित ...पूछा आपने कैसे हो ?.

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पूछा आपने कैसे हो ?

क्या कहें ?

कहें के क्रोधित हैं

कहें के पीड़ित हैं

कहें के आँख सूखती नहीं

कहें के 

धधक रहा है ज्वालामुखी भीतर

कहें के 

अंत चाहिए इस पैशाचिकता का

कहें के 

करेंगे एक नयी धरती का निर्माण 

जहाँ हम 

हमारे होने का अर्थ भोग सकें

और कह सकें 

गर्व से

के हम मनुष्य हैं 
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गीता पंडित 
२१ मार्च २०१३ 

Monday, March 11, 2013

स्त्री देह नहीं मन है ...... गीता पंडित



अंतर्राष्ट्रीय  महिला दिवस पर __


धन्य हुई स्त्री आज एक दिन तो कम से कम उसे सम्मानित किया गया | एक दिन की 
साम्राज्ञी बनाया गया | उसके लियें जय - जयकार के नारे लगाए गये जिसने उम्रभर 
संस्कारों को जिया | घूँट - घूँट समर्पण को पिया | बंद कमरे, बंद तहखानों में बिन 
हवा धूप रोशनी के स्वयं को भुलाकर तुम्हें केवल तुम्हें स्मरण किया | आहा !!!! तालियाँ
बजानी चाहियें उसे आज वो कृतग्य हुई |

यही हुआ हमेशा कभी लक्ष्मी, कभी देवी दुर्गा पूजनीया बनाकर अस्तित्व ही छीन लिया | 
उसमैं स्त्री कब रही उसे याद नहीं | केवल भोग्या, दासी, इंसान कब समझा गया ? हर 
काल में, हर हाल में समर्पिता होकर भी समर्पण को तरसती रही, घुट्ती रही | क्या कहूँ
 बहुत क्षोभ है, बहुत पीड़ा है आक्रोश है, फिर भी प्रेम है तुमसे |

स्त्री यानी आधी आबादी, पराये तो पराये अपनों से ही त्रस्त, अपनों से ही खौफज़दा | 
ओह!!!!! अपनों पर भी विश्वास न कर पाये तो कहाँ जाये, किससे कहे, कैसे सहे, कैसे 
निबटे ? घर या बाहर हर जगह असुरक्षित |

लेकिन कितना भी तोड़ो, नोचो खसोटो, आघात करो उन अंगों पर जहाँ से तुम्हें जन्म 
मिला है वो न टूटेगी न, न अंधेरों को अपना साथी बनाएगी |

वो देह नहीं मन है, विचार है | निडर हो जियेगी | वो सृष्टा है, निर्मात्री है सृष्टि की | 
फिर से निर्माण करेगी एक नयी सृष्टि का, जहाँ वह स्त्री होने का सुख भोग सके, और 
गर्व कर सके अपने जननी होने पर | आमीन !!!!!!
                                                  
                                                                                                                     


गीता पंडित
8 फरवरी 2013   

 http://fargudiya.blogspot.in/2013/03/blog-post_12.html