Tuesday, March 6, 2012

पड़ी रंगों की बौछारें ....... गीता पंडित

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पड़ीं रंगों की बौछारें सब सखियाँ डोल गयीं
लाज के सारे पहरे देखो 
पल में खोल गयीं |

भर पिचकारी 
मार रहे हैं सखा सभी मिल जुलकर
काले नीले पीले चहरे रंग हाथ में भर कर
लगा रहे इक दूजे पर सब हँसी ठिठोली करके
आँखों में पतवार नेह की
नौका पर चढ़ चढ़कर

पाँव थिरकने लगे कि झांझर 
संग में बोल गयीं |

कैसा ये 
मौसम है जिसमें झर गये पीले-पात
होली का उत्सव है लाया नेह रंगीले प्रात
रंग भरे सपने हैं आये रंग भरी मनुहारें
झूम रहे हैं सब नर नारी
हो गये ढीले गात
    
याद पिया की आकर नयनों 
को अनमोल गयीं ||



 गीता पंडित 


साभार  http://www.anubhuti-hindi.org/ से 
  

सभी को होली के विशेष उत्सव पर रंगभरी अशेष शुभ कामनाएँ और बधाई .... गीता ..

2 comments:

Ashish Pandey "Raj" said...

कैसा ये
मौसम है जिसमें झर गये पीले-पात
होली का उत्सव है लाया नेह रंगीले प्रात
रंग भरे सपने हैं आये रंग भरी मनुहारें
झूम रहे हैं सब नर नारी....

नेह-रंग से सराबोर कविता के लिए आभार
होली की शुभकामनाएं दी !!

अनुपमा पाठक said...

बेहद सुन्दर!
शुभकामनाएं!